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लोग क्या कहेंगे

18 अगस्त 2022

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    जब अपने गांव से रेणु इस शहर में पहली बार कुछ दिनों के लिए आई तो इस शहर की चकाचौंध से हैरान हो गई । यहाँ की लड़कियां कितनी बिंदास हैं !  जीन्स टी शर्ट पहन कर लड़कों के साथ यहां वहां बैठी हैं । गप्पे लड़ा रही हैं। हाय दईया ! इन्हें ज़रा भी डर नही है कि लोग क्या कहेंगे ....? उसे तो गांव से यहां कुछ दिनों के लिए अम्मा बाबूजी ने भेजा था क्योंकि उसके कारण गांव में बवाल मचा हुआ था ।  कुछ दिन इस शहर की चकाचौंध में रहकर वो मामला शांत होने के बाद फिर अपने गांव लौट आई थी लेकिन उसे सबसे ज्यादा इसी बात से तकलीफ थी कि अब गांव वाले क्या सोचेंगे ,क्या कहेंगे,,,,?

गांव का उसका घर, वही कबेलू का बड़ा सा आंगन वाला , जहां गाय भैंस बंधी हैं । बछड़ा यहां वहां उछल कूद मचा रहा है । बाबूजी खेत की ओर जा रहे हैं , अम्मा उनके लिए सामान जोड़ रही हैं । उनके जाने के बाद अम्मा दही बिलोएँगी और रेणु के जिम्मे सारे घर की सफाई । हराभरा शांत और खाली खाली सा दिन । उस चकाचौंध से यहाँ कितनी शांति है । लेकिन ये गांव एक अनमोल और असीम सम्भावनओं से भरी जिंदगी के लिए बहुत छोटा है ।

   आज रेणु का मन नही लग रहा है । वो अम्मा से कहती है, - अम्मा थोड़ा गांव घूमकर आ जाऊँ..? नेहा के घर भी चली जाऊंगी ।
अम्मा ने कहा ,  - जा, लेकिन जरा जल्दी आ जाना । यहां वहां मत खड़ी हो जाना किसी से गप्प लड़ाने । अब तू बड़ी हो गई है । जरा सी बात पर लोग कुछ भी बोलने लगते हैं ।
रेणु के मन में एक टीस हुई ,सोचने लगी कितना फर्क है, यहाँ और वहां में । वहां कोई भी किसी से मिल रहा है ,गप्पें लड़ा रहा है तो किसी को उस ओर देखने की फुरसत नही।
यहां नजरें घूरती रहती हैं । किसी के घर दो बार से ज्यादा चले जाओ तो बातें शुरू हो जाती हैं । औरतों की खुसुर पुसूर शुरू हो जाती है ।
उसका मन विद्रोह करने लगा । उसने तय किया कि वो अब यहां नही रहेगी । शहर में रहकर कुछ न कुछ हुनर सीखेगी और अपनी जिंदगी का फ़ैसला खुद करेगी ।

उसने अम्मा बाबुजी को मना लिया । थक हारकर अम्मा बाबूजी को आखिर में उसे शहर भेजना ही पड़ा ।

मेरे बारे में लोग क्या कहेंगे ,,,,लोग क्या सोचेंगे,,,कितनी बदनामी होगी,,,,एक छोटे से गांव-कस्बे का डर रेणु वहीं छोड़ आई । यहां इस बड़े शहर में किसी को किसी की जिंदगी से कोई मतलब नही ,,,,

रेणु को याद है वो झगड़ा , जो उसकी वजह से हुआ था । क्या गांव की लड़कियों का दिल नही होता ?  क्या उन्हें अपनी मर्जी से किसी से बात करना गुनाह है ...? जब रेणु अपने छोटे से गांव में अपने प्रेमी के साथ लोगों की चर्चा में आ गई, तब मामला बहुत गर्म हुआ और उसके घरवालों के तेवर बदल गए ,,,बाबूजी ने उसपर कई तरह की बंदिश लगा दी और उसका रिश्ता ढूंढने लगे। वे भी ये सोचकर परेशान थे कि  जिनके साथ।उनका रोज उठना बैठना है ऐसे में वो किस मुह से बात करेंगे ।
    लेकिन अब रेणु यहाँ आ गई थी । यहां रेणु को पढ़ते दो साल हो गए । उसने देखा कि यहाँ का माहौल ही अलग है । हर कोई बिंदास है । कई लड़कियां तो सिगरेट और बियर भी पीती हैं, उन्हें किसी की परवाह नही,,इस बात की जरा भी फिक्र नही कि लोग क्या सोचते हैं ? लोग क्या कहेंगे ?

वो अब इनके साथ रहकर इस डर से  मुक्त हो रही है ,,,अब गांव की उस मानसिकता से वो उबर रही है । वो मानती है कि आजाद ख्याल होने का ये मतलब नही कि नशा किया जाय,किसी से भी सम्बंध बना लिया जाय,, आजादी का मतलब ये देखना कि जो कुछ भी किया जाय, उसका अपनी जिंदगी में कितना पॉजिटिव असर हो रहा है और खुद का सफर किसी अच्छे मोड़ से गुजर रहा है या नही,,,कहीं ये सिर्फ दूसरों के क्या सोचने की फिक्र में बंद होकर बदबूदार तो नही बन रहा ...?

किसी के अपने प्रति ख्याल बन जाने का डर न जाने कितनी रूकावटें बन जाता है,
अब वो ऐसा डर नही पालेगी,,उसे कुछ बनना है,,,वो किसी गांव  की डरी सहमी और साधारण लड़की नही कहलाना चाहती,,,!

इस शहर का चकाचौंध कभी कभी उसे परेशान भी करता है कि यहां लोगों के पास किसी के लिए समय नही, लेकिन ये शहर खतरनाक कानाफूसी से ज़रा दूर ही रहता है।
दोनों की अपनी अपनी खूबी खराबी है । लेकिन शहर शिक्षा की रोशनी से नहा रहा है वो अपने तौर तरीके बदलता है और गांव अपने तौर तरीकों पर समझौता नही करता ।जब गांव शहर की शिक्षा की रोशनी से नहायेगा और शहर गांव का सुकून पाने के लिए अपनी चकाचौंध से दूर होगा तो दोनों बेहतरी की ओर बढ़ेंगे,,,और आदमी आजादी का,,,सही महत्व समझ सकेगा,,,।


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रचनाएँ
कुछ इस तरह से
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इस किताब में संवाद के माध्यम से जीवन जीने का बेहतरीन समाधान किया गया है साथ ही धर्म दर्शन के विषयों पर प्रकाश डालते हुए क्या होना चाहिए क्या नही होना चाहिए इस तरह की शंका का समाधान किया गया है। एक आस्था ही इतना बड़ा सम्बल है कि मनुष्य अपनी घोर प्रतिकूलता में भी खुद को टूटने से बचा ले जाता है । समस्या और आफत जिंदगी के साथ रहेंगी लेकिन आस्था और विवेक का साथ इनका डटकर सामना किया जा सकता है । सहनशीलता ज्यों ज्यों बढ़ती जाती है त्यों त्यों परिस्थिति का दबाव कम महसूस होता है । हमारा जीवन आनंद और सुकून चाहता है लेकिन वो कैसे मिले ? इसके लिए हमारे सामने जो भी हालात आते हैं उनका सामना करने के लिए एक बड़ा नजरिया विकसित करना होगा ।और यहां सदगुरू से संवाद करके आमजन अपने लिए बेहतर विकल्प पा लेते हैं । प्रश्न उत्तर और चिंतन के माध्यम से अलग अलग विषय पर प्रकाश डाला गया है ।
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