भयानक साय है ,जिनके न चेहरे हैं ,
न नाम हैं |
जला दिया लोगों को ,ज़िंदा लोगों को,
या खुदा!
ज़िंदा दिलों की नाज़ुक सी डोर थी,
मज़हब की ज़ोर ने इसे भी तोर दिया|
सब भाग रहे थे, सब चीख रहे थे,
लोग दर्दनाक मारे गए मुर्दा के बीच में भी छिप रहे थे|
कही आग की लपटे थे ,कही सन्नाटा ही सन्नाटा था |
कही डर का मंज़र था , कही खूनी खंज़र था |
कही भेदी हुई लाश थी ,
कही इनसे ही बुझी अंगारो की प्यास थी |
मुर्दा भी हथेली खोल के मरते है ताकि दिल से दुआ कर सकें :-
सब ठीक हो ,सब खैरियत हो,इंसानियत बची रहे , ताकि:-
अपनी इस गुलिस्ता में अंगारे नहीं , फूल बरस सकें |
बेनाम साय नहीं, ज़िंदा दिल जी सकें |