तुमसा खूबसूरत इस जहां में कहाँ ,
मोहब्बत कर खुद से ,
ऐ खुदा क बन्दे ,
ऐसे जैसे बेइन्तिहा |
तराशा होगा तुझे भी ,
अपने नर्म हाथों से उसने ,
शुक्र कर तू नहीं है बेज़ुबाँ ,
दीखता है ,सुनता है तुझे भी ये जहां |
शिकायत न कर,
अपने जिस्म के हर एक दर्द पर ,
खुशनसीब है तू जो चलता है आगे,
और पीछे छुटत है तेरे निशाँ |
कभी तो उठा ले अपने नर्म हाथो को,
दुआ की फितरत कभी तो रख,
ज़माना कहेगा खुद तुझे आगे आकर,
तेरी ख़ूबसूरती है जन्नंत की हया |
मोहोब्बत कर खुद से ,
ऐ खुदा के बन्दे,
ऐसे जैसे बेइंतेहा ||