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कहानी -3 झूले पर मौत

8 अक्टूबर 2021

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कहानी -3


झूले पर मौत



अक्टूबर का महीना था, मौसम अधिकतर सुहाना ही होता था। लेकिन अक्सर शाम जल्दी ढलने लगती थी और पर्वतीय इलाकों में शाम के बाद सर्द लहर चलना भी आम बात थी।

सुहानी और सुरेश अपने पारिवारिक मित्र पंकज और प्रेरणा के साथ नैनीताल टूर पर आए हुए थे। सुरेश के पास मारुति जिप्सी थी जो पहाड़ी यात्राओं के लिए बिल्कुल उपयोगी थी। ऊपर से सुरेश ने उसे मोडिफाइड करवाकर छत को एक फाइबर ग्लास से बनबाया था और पीछे की सीट सीधी करवाकर अगली सीटों के पैरलर करवा ली थी। जिप्सी की फाइबर ग्लास रूफ केवल चार पिलर के सहारे टिकी हुई थी जिसे कभी भी एक साइड से खोलकर पीछे डिक्की में रख कर जिप्सी को फूल ओपन बनाया जा सकता था।

दो दिन और एक रात की फुल मस्ती के बाद ये चारों लोग शाम ढलने से पहले नैनीताल से वापस आने के लिए निकल पड़े। लेकिन उस दिन शाम कुछ जल्दी ही ढलने लगी थी और सात बजते-बजते अंधकार पूरी तरह पसर गया था। यूं तो ठंड बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन कहते हैं ना कभी कभी वक़्त पूरी तरह मज़ाक के मूड में होता है। तो शायद आज का दिन भी इन चारों के लिए कुछ ऐसा ही बन गया था। वातावरण में धीरे-धीरे घना सफेद कोहरा फैलने लगा था जो बस बीस पच्चीस फुट की ऊँचाई तक ही था लेकिन पूरी तरह सफेद रंग की चादर जैसे उनके आगे उनका रास्ता रोके खड़ी थी।

"मैंने कहा था ना कि या तो जल्दी निकलो नहीं तो कल सुबह चलेंगे। अब देखो कैसा डरावना मौसम हो गया है। सामने का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है कि ऊपर वाला भी हमें वापस जाने से रोकने का संकेत दे रहा है।" प्रेरणा घबराई हुई आवाज में बोली।

"अरे कुछ नहीं भाभी जी! ये तो बस पहाड़ी आबोहवा का असर है। पहाड़ों में ऊपर ठंड होने लगी है और नीचे मौसम गर्म है। बस इसी लिए ये कोहरा आ गया है। हम लोग बस आधे घण्टे में ही कालाढूंगी से आगे निकल जाएँगे उसके बाद सड़क सीधी और एरिया प्लेन होगा। फिर हम आराम से दो घण्टे में मुरादाबाद पहुँचकर अपने बिस्तर में होंगे।" सुरेश ने लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए कहा, लेकिन कोहरे और लापरवाही में वह ये नहीं देख पाया कि गाड़ी कबकी सड़क से उतर कर नीचे कच्चे रास्ते पर चलने लगी है।

कोहरे की उस चादर पर पड़कर गाड़ी की लाइट्स भी घेरे के रूप में फैल जाती थीं। उन्हें नज़र आते थे तो बस पेड़ों के साये जो सामने रास्ता होने की पुष्टि करते इनके साथ-साथ चल रहे थे।

ऐसे ही चलते-चलते कोई एक घण्टा गुजर गया था। गाड़ी की स्पीड भी बहुत कम थी। प्रेरणा को हैरानी हो रही थी कि पिछले एक घण्टे से ना तो कोई गाड़ी इनके सामने से आई थी और ना ही पीछे से। लेकिन वह ये सोचकर चुप थी कि ये लोग फिर डरपोक कहकर उसकी मज़ाक बनाएँगे। लेकिन अंदर ही अंदर वह बुरी तरह घबरा रही थी और हनुमान जी को याद कर रही थी।

कुछ ही दूर और चलने के बाद इनकी गाड़ी झटके खाने लगी और फिर एकदम खररर!! की तेज आवाज करके बन्द पड़ गयी।

"अब??" प्रेरणा और प्रशांत ने लगभग एक साथ ये सवाल किया।

"लगता है चढ़ाई पर चढ़ने की वजह से इंजन गर्म हो गया।" सुरेश ने फिर उसी बेपरवाही से जवाब दिया और  गाड़ी से नीचे कूद गया।

"लेकिन हम तो नीचे उतर रहे हैं फिर चढ़ाई कहाँ से आ गयी? और ये रास्ता भी कुछ अनजान सा नहीं लग रहा? प्रेरणा ने नीचे देखते हुए कहा।

"हाँ यार हम तो नैनीताल से वापस लौट रहे हैं तो फिर हम चढ़ाई क्यों चढ़ रहे हैं? और ये तो कोई कच्चा रास्ता है यार सुरेश। क्या हम लोग रास्ता भटककर कहीं और निकल आये हैं?" पंकज ने डरते हुए पूछा।

"अरे यार चुप करो तुम दोनों डरपोक लोग! पहले मुझे गाड़ी देखने दो की इसमें क्या हुआ है। तबतक तुम लोग नेट खोलकर लोकेशन और रास्ता देखने की कोशिश करो।" सुरेश ने कहा और आगे बढ़कर गाड़ी का बोनट उठा दिया। बोनट उठते ही उसमें से उठते धुएँ से सुरेश जलते-जलते बचा।

गाड़ी इतनी बुरी तरह गर्म हुई थी कि घुएँ में आग की लपटें नज़र आ रही थीं।

"ओह्ह!! ओवर हीट होने के कारण इंजन जाम हो गया लगता है। अब बिना इंजन ठंडा करे गाड़ी स्टार्ट नहीं होगी यार!" सुरेश पहिये पर लात मारकर झुंझलाहट उतरते हुए बोला।

"फिर अब क्या करें?" सुहानी जो अभी भी सीट पर बैठी हुई थी, नीचे उतरते हुए बोली।

"पंकज देखो पीछे डिक्की में एक कैन में पानी होगा जरा ले आओ तो।" सुरेश ने धीरे से कहा।

"यार सुरेश यहाँ कैन तो है लेकिन इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं है।" पंकज कैन को हिलाते हुए बोला।

"धत्त!!! इसे कहते हैं मुसीबत में और मुसीबत।

अब जाओ और कहीं से पानी ढूंढकर लेकर आओ।" सुरेश ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा।

"अरे यार अब इस अनजान जँगल में मैं कहाँ से पानी ढूँढ़ के लाऊँ?" सुरेश डरते हुए बोला।

"अच्छा चल हम दोनों चलते हैं। और तुम दोनों गाड़ी में ही बैठी रहना हमारे लौटने तक।" सुरेश ने प्रेरणा और सुहानी को देखते हुए कहा।

"यार सुरेश मुझे इन दोनों को ऐसे अकेले इस घने जंगल में छोड़कर जाना ठीक नहीं लग रहा। मेफे विचार से या तो हम चारों को चलना चाहिए या फिर यहीं रुककर रात बितानी चाहिए। ऐसे भी ये रास्ता बिल्कुल सुनसान है। तुमने देखा है कि पिछले दो घण्टे से हमने इस रास्ते पर ना तो कोई गाड़ी देखी है और ना ही कोई आदमी।" पंकज ने कुछ सोचते हुए कहा।

"पंकज जी ठीक कह रहे हैं सुरेश, और ऐसे भी इस घने अँधेरे में पानी खोजना आसान नहीं होगा।

क्या तुम्हें याद है कि पीछे इस रास्ते पर पानी का कोई पॉइंट दिखा हो या कोई बस्ती ही मिली हो। फिर आगे भी अंधेरे में ही हाथ-पांव मारने होंगे।" सुहानी ने सुरेश को समझाते हुए कहा।

"ठीक है आओ कुछ सोचते हैं।" सुरेश ने गाड़ी से बोतल निकालते हुए कहा और पैग बनाने लगा।

"यार रात भर यहाँ रुकना भी सही नहीं होगा! ये जँगल जँगली जनवरों से भरा हो सकता है औऱ यदि कोई तेंदुए या हाथी इधर आ गया तो हमारे लिए जान का खतरा हो जाएगा। वैसे इस रास्ते की बनाबट कुछ ऐसी नहीं लगती जैसे ये किसी रिसोर्ट का रास्ता हो? अभी समय क्या हुआ है? और तुमने नेट से लोकेशन देखने की कोशिश की?" सुरेश ने कई सवाल एक साथ कर दिए।

"समय तो अभी नो बजे हैं और नेटवर्क यहाँ है नहीं तो बाकी हम लोकेशन तो छोड़ किसी को कॉल तक नहीं कर सकते।" पंकज ने जवाब दिया।

"ओह्ह!! फिर अब?"  प्रेरणा ने घबराहट भरी आवाज में पूछा।

"चलो चारों लोग एक साथ चलते हैं शायद सुरेश का अनुमान ठीक हो और आगे कोई रिसोर्ट मिल जाये। नहीं तो कोई पहाड़ी गाँव तो अवश्य होना चाहिए क्योंकि इस रास्ते पर घास बिल्कुल नहीं है और गाड़ियों के पहियों के निशान भी हैं।" सुरेश ने कहा और चारों लोग उस रास्ते पर आगे बढ़ गए।

कोई आधा घण्टा चलने के बाद इन्हें सामने एक बहुत बड़ा घास का मैदान दिखाई दिया जिसके बीच में लोहे के दो झूले लगे हुए थे। उसके पीछे एक बड़ी सी बिल्डिंग थी जिसका शीशे के दरवाजा दूर से ही चमक रहा था। उसे देखकर इनकी आँखो में चमक आ गयी और इनके कदमों की गति खुद ब खुद बढ़ गयी।

थोड़ा आगे बढ़ने पर इनके कानों में झूले की करर्रर!! करर्रर!! की तेज आवाज आने लगी। इन्होंने ध्यान से देखा सामने झूलों पर दो बच्चे लगभग अर्धनग्न मस्त होकर झूला झूल रहे थे।

"अरे यार कौन लोग हैं ये जो इतनी सर्दी में भी बच्चों को इतनी रात में झूला झूलने के लिए छोड़ रखा है और खुद मस्त होकर कमरों में पड़े हैं।" सुरेश उन बच्चों को देखकर कुछ जोर से बोला।

तभी उन्हें बच्चो के तेज खिलखिला कर हँसने की आवाज आने लगी।

"शहशशस!!!, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा, इतनी रात में ये बच्चे बाहर कैसे हैं। जरा देखो उन बच्चों को इतने नाज़ुक से दिख रहे हैं लेकिन झूला ऐसी आवाज कर रहा है जैसे ये हाथी के बच्चे हों। और इनकी हँसी कितनी डरावनी है।" प्रेरणा पंकज का हाथ पकड़कर रोकते हुए बोली।

"अरे कुछ नहीं भाभी ये बस आपका वहम है, अभी समय ही क्या हुआ है जो बच्चे बाहर नहीं हो सकते। और रही बात झूले की आवाज की तो हो सकता है झूला बाहर होने की बजह से जंग खा रहा हो और आवाज कर रहा हो।" सुरेश उन बच्चों की ओर बढ़ते हुए बोला।

ये लोग अभी कुछ ही दूर आगे बढ़े थे कि एक आदमी तेज़ी से दौड़ता हुआ आया और बोला, "साब जी उधर मत जाइए ये अच्छा होटल नहीं है। आप लोग मेरे पीछे आइए। उधर मुड़कर मत देखना साब जी बस मेरे पीछे चले आइए।"

पता नहीं ये उसकी आवाज का जादू था या कोई दैवीय प्रेरणा की ये लोग उस आदमी के पीछे हो लिए चुपचाप।

ये लोग अपनी तरफ से लगभग दौड़ ही रहे थे लेकिन फिर भी उस आदमी को पकड़ नहीं पा रहे थे। लेकिन बस बिना पीछे देखे ये लोग उस आदमी के पीछे भागे जा रहे थे।

इनके कानों में पीछे की तरफ से बहुत भयानक चीखें गूँजती महसूस हो रही थीं जैसे कोई इनके इधर भाग आने से बहुत नाखुश हो।

कुछ ही देर में सामने कुछ दिए से जलते दिखने लगे।

"उधर साब जी!!" उस आदमी ने इशारा करके कहा और अचानक गायब हो गया।

ये लोग अब और तेज़ी से दौड़ रहे थे इन्हें कुछ-कुछ समझ आ रहा था। कुछ ही देर में ये उस गाँव में थे और एक घर का दरवाजा पीट रहे थे।

"कुछ ही देर में दरवाजा खुला, सामने एक बूढ़ा और एक लड़की खड़े थे।

"हम लोग मुसाफिर हैं और रास्ता भटक गए हैं, क्या आज रात के लिए हम यहाँ रह सकते हैं?" सुरेश ने घबराए स्वर में पूछा।

"आ जाइये आप लोग।" बूढ़े ने कहा और सामने से हट गया।

कुछ ही देर में ये लोग उस बूढ़े को सारी कहानी सुना चुके थे कि कैसे ये लोग नैनीताल से निकलकर रास्ता भटक गए और इनकी गाड़ी खराब हो गयी। फिर इन्हें झूले पर बच्चे दिखे और ये उधर जा रहे थे तो कोई बूढ़ा बाबा इन्हें इधर ले आया।

इनकी कहानी सुनकर बूढ़े ने बस इतना ही कहा कि, "झूले पर मौत!!

बच गए तुम लोग देवता के आशीर्वाद से। चलो अब खाना खाकर सो जाओ बाकी बातें मैं सुबह बताऊँगा।"

इसी बीच बूढ़े की पोती ने इनके लिए भात परोस दिया और ये लोग खाकर बिस्तर पर लेट गए।

सुबह बूढ़े ने बताया कि "जिस जगह से देवता ने तुम्हे बचाया वह कोई रिसोर्ट नहीं बल्कि अंग्रेजों के जमाने का कब्रिस्तान है और जो झूले पर झूलते हुए तुम्हे दिखाई दिए वह कोई बच्चे नहीं बल्कि दुस्ट आत्माएँ हैं। अगर तुम लोग दो कदम और आगे बढ़ जाते तो फिर तुम्हें कोई नहीं बचा सकता था।

इन लोगों की पूरी बस्ती को आज़ादी की लड़ाई में जला दिया गया था और अब ये लोग आत्मा बनकर उसी का बदला लेने के लिए लोगों को भ्रमित करके इधर बुलाकर डराकर मार डालते हैं।  हमारे ग्राम देवता कई बार लोगों को बचा लेते हैं लेकिन कई बार ग्राम देवता को भी ये लोग भ्रमित कर देते हैं और फिर उन्हें वहाँ पहुँचने में देर हो जाती है। एक बार जब कोई इनकी सीमा में कदम रख देता है तो फिर उसे कोई नहीं बचा सकता। तुम लोग भाग्यशाली हो जो समय रहते ग्रामदेवता तुम्हें बचा लाये।"

फिर ये लोग बूढ़े को धन्यवाद देकर वहाँ से चले आये इन्होंने दूर से वह जगह देखी जहाँ रात में इन्हें झूले पर मौत दिखी थी। वह बहुत डरावनी जगह थी एक सदियों पुराना टूटाफूटा कब्रिस्तान जिसका लोहे का टूटा हुआ गेट लटक रहा था और रात में वे आत्माएँ इन्ही दरवाजे के पल्लों पर झूल रहे थे। ये देखकर इनके रोएं खड़े हो गए और ये लोग बिना पीछे देखे वापस लौट आये।

अब इनकी गाड़ी आराम से चालू हो गयी और ये लोग घर आ गए।

लेकिन लौटने के बाद भी कई दिन इन्हें वही झूले पर मौत नज़र आती रही और ये लोग बुखार में काँपते रहे।


         समाप्त

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सन्दर्भ:- सन्दर्भ:-इस पुस्तक में पाँच सस्पेंस थ्रिलर एवं हॉरर विधा की कहानियाँ सम्मलित हैं।  कहानियां विशुद्ध मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गयी मौलिक कहानियां हैं एवं किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति एवं घटना से इनका कोई सम्बंध नहीं है। प्रस्तावना:- भूत, प्रेत, आत्मा एवं पारलौकिक शक्तियों के बारे में जानने के लिए मानव मन में हमेशा ही जिज्ञासा रही है, वह हमेशा सोचता है कि क्या यह सच में होते हैं अथवा केवल एक मिथक है। अगर कहीं भी भूत-प्रेत का जिक्र आता है तो हमारे मन में दो तरह के भाव आते हैं, पहला:-भय, एवं दूसरा:- क्या भूत सच में होते हैं। इस विषय पर समय-समय पर अनेको लोग शोध भी करते है और कई देशों की सरकारें कुछ स्थानों को बंद करके इस बात की पुष्टि भी करती हैं कि कुछ तो है, कोई अदृश्य पारलौकिक शक्ति, या शायद भूत-प्रेत है। यहाँ मैं किसी शोध अथवा किसी विचार का समर्थन नहीं करता हूँ अपितु आपके मनोरंजन के लिए लाया हूँ कुछ अनसुनी कल्पना कथाएँ एवं कुछ सत्य कथाओं पर आधारित कहानियां, अब मेरे प्रिय पाठकों को तय करना है कि उन्हें कौन सी कहानियाँ सत्य लगीं एवं कौन सी मेरी परिकल्पना मात्र। एवं मैं अपने उद्देश्य अर्थात उनके मनोरंजन में कितना सफल हुआ। यदि किसी पाठक के पास कोई सत्य घटना हो जिसपर वह कहानी पढ़ना चाहते हों तो वह घटना मुझे बता सकते हैं। आपका नृपेंद्र शर्मा "सागर"

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