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कण-कण से प्रस्फुटित सावन होगया

21 अगस्त 2022

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बिखरी बूंदों की यादों से

अब प्रेम सघन होगया।

मिली तरनी सागर में

तो वह धन्य होगया।।


हुलसी कोंपले हजारों

तितलियों का हर्षित मन होगया।

मिलन निहार,हिमपति का

अंग-अंग मगन होगया।


प्रियसी की सुन छन-छन पायलिया

संध्या का रोमांचित तन होगया।।

घूमर-घूमर बदरा हरषे

भ्रमर को बसंत का भ्रम होगया।।


है उदास-धूसरित-दुःखी धरा

ताक द्रवित गगन होगया।

क्रोधित हो चीखी चपला

सचेत-सहमा भुवन होगया।।


व्याकुल कृषक थे प्यासे खेत

किसानी का खूब जतन होगया।

चहूंओर बरसी खूशियां

अन्न-अन्न से भरा आंगन होगया।।


कलियों ने बिखेरी राहों में सुगंध

मंत्रमुग्ध थका पवन होगया।

थी पसारे अलक, अब छककर बरसी बदरिया

कण-कण से प्रस्फुटित सावन होगया।।

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#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra

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कण कण से प्रस्फुटित सावन होगया 

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