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करुण पत्र

5 नवम्बर 2015

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प्रधानमंत्रीजी के नाम एक दुखियारी भैंस का खुला ख़त - प्रधानमंत्रीजी, सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं ना आज़म खां की भैंस हूं और ना लालू यादव की! ना मैं कभी रामपुर गयी, ना पटना! मेरा उनकी भैंसों से दूर-दूर का नाता नहीं। यह सब मैं इसलिये बता रही हूं कि कहीं आप मुझे विरोधी पक्ष की भैंस न समझे लें। मैं तो भारत के करोड़ों इंसानों की तरह आपकी बहुत बड़ी फ़ैन हूं। जब आपकी सरकार बनी तो जानवरों में सबसे ज़्यादा ख़ुशी हम भैंसों को ही हुई थी। हमें लगा कि ‘अच्छे दिन’ सबसे पहले हमारे ही आएंगे। लेकिन हुआ एकदम उल्टा! आपके राज में हमारी और दुर्दशा हो गई। अब जिसे देखो वही गाय की तारीफ़ करने में लगा है। कोई उसे माता बता रहा है, तो कोई बहन! अगर गाय माता है तो हम भी तो आपकी चाची, ताई, मौसी, बुआ कुछ लगती होंगी? हम सब समझती हैं। हम अभागनों का रंग काला है न! इसीलिए आप इंसान लोग हमेशा हमें ज़लील करते रहते हैं और गाय को सर पे चढ़ाते रहते हैं! आप किस-किस तरह हम भैंसों का अपमान करते हैं, इसकी मिसाल देखिए: आपका काम बिगड़ता है अपनी ग़लती से और टारगेट करते हैं हमें कि- देखो गई भैंस पानी में! गाय को क्यों नहीं भेजते पानी में? वो महारानी क्या पानी में गल जाएगी? आप लोगों में जितने भी लालू लल्लू हैं, उन सबको भी हमेशा हमारे नाम पर ही गाली दी जाती है- काला अक्षर भैंस बराबर! माना कि हम अनपढ़ हैं, लेकिन गाय ने क्या पीएचडी की हुई है? जब आपमें से कोई किसी की बात नहीं सुनता, तब भी हमेशा यही बोलते हैं कि- भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा! आपसे कोई कह के मर गया था कि हमारे आगे बीन बजाओ? बजा लो अपनी उसी प्यारी गाय के आगे! अगर आपकी कोई औरत फैलकर बेडौल हो जाय तब उसे भी हमेशा हमसे ही कंपेयर करते हैं, कि- भैंस की तरह मोटी हो गयी हो! करीना, कैटरीना तो गाय और डॉली बिंद्रा भैंस! वाह जी वाह! गाली-गलौज करो आप और नाम बदनाम करो हमारा, कि- भैंस पूंछ उठाएगी तो गोबर ही करेगी! हम गोबर करती हैं तो गाय क्या हलवा करती है? अपनी चहेती गाय की मिसाल आप सिर्फ़ तब देते हैं, जब आपको किसी की तारीफ़ करनी होती है- वह तो बेचारा गाय की तरह सीधा है! या- अजी, वह तो रामजी की गाय है! तो गाय तो हो गयी रामजी की और हम हो गये लालूजी के? वाह रे इंसान! ये हाल तो तब है, जब आप में से ज़्यादातर लोग हम भैंसों का दूध पीकर ही सांड बने घूम रहे हैं। उस दूध का क़र्ज़ चुकाना तो दूर, उल्टे हमें बेइज़्ज़त करते हैं! आपकी चहेती गायों की संख्या तो हमारे मुक़ाबले कुछ भी नहीं। फिर भी, मेजोरिटी में होते हुए भी, हमारे साथ ऐसा सलूक हो रहा है? प्रधानमंत्री जी, आप तो मेजोरिटी के हिमायती हैं, फिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यों होने दे रहे हैं? प्लीज़ कुछ करो! आपके ‘कुछ’ करने के इंतज़ार में – आपकी एक तुच्छ प्रशंसक! - भैंस 🐃🐃🐃🐃
चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

व्यंग्य की शैली विशिष्ट है । विनय जी लिखते रहिये |

5 नवम्बर 2015

विनय सिंह

विनय सिंह

बहुत बहुत धन्यवाद

5 नवम्बर 2015

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

आपकी लेखन शैली ताजगी से भरपूर है

5 नवम्बर 2015

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