शब्दों के मौन प्रलाप परखामोशी गढ़ लेती हूँभाव भले ही थिरक रहे होमैं मौन रख लेती हूँहर तरफ फैला सन्नाटाशब्द उमड़ घुमड़ रह जातेमानो मन की पीड़ा मेंये बादल बन जाते हैंबरस नही सकते हैं, लेकिनगरज गरज रह जाते ह
शब्दों के मौन प्रलाप परखामोशी गढ़ लेती हूँभाव भले ही थिरक रहे होमैं मौन रख लेती हूँहर तरफ फैला सन्नाटाशब्द उमड़ घुमड़ रह जातेमानो मन की पीड़ा मेंये बादल बन जाते हैंबरस नही सकते हैं, लेकिनगरज गरज रह जाते ह
दोपहर तक बिक गया बाज़ार का हर एक झूँठ, और मैं एक सच को लेकर शाम तक बैठा रहा ! (फेसबुक ज्ञान ) आज के जमाने का मनुष्य काफी स्मार्ट बन चुका है, उसे किसके साथ कितना और किस तरीके से