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कहानी कविता पढ़ना लिखना शौक है, अक्सर कविता शायरी लिखती हूँ।

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-04-24
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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-03-14

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प्रेम

प्रेम

मैं प्रेम में हूँ या मुझमें ही प्रेम है क्या तुम बता सकते हो किसमे प्रेम है चारो तरफ प्रेम मय जगत के मैं तन्मयता से तन्मय हूँ हाँ प्रेम मेरे भीतर ही बहता है इतर उतर पता नही किधर मगर कुछ तो है मेरे भीतर पिघलता है जमता है फिर बह जाता ममत्वय से कुछ पान

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प्रेम

प्रेम

मैं प्रेम में हूँ या मुझमें ही प्रेम है क्या तुम बता सकते हो किसमे प्रेम है चारो तरफ प्रेम मय जगत के मैं तन्मयता से तन्मय हूँ हाँ प्रेम मेरे भीतर ही बहता है इतर उतर पता नही किधर मगर कुछ तो है मेरे भीतर पिघलता है जमता है फिर बह जाता ममत्वय से कुछ पान

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मेरा शहर

मेरा शहर

मेरा शहर जैसा नाम से विदित है,यह मैं अपने शहर के विषय में छोटी सी सी छोटी बात कविता के माध्यम से व्यक्त करना चाहती हूं बचपन से जुड़ी यादों का शहर,यौवन की दहलीज पर कदम रखते खुद में सिमट जाने का शहर,वास्तव में देखा जाये तो बहुत कुछ समेत रखा है। शाहर न

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मेरा शहर

मेरा शहर

मेरा शहर जैसा नाम से विदित है,यह मैं अपने शहर के विषय में छोटी सी सी छोटी बात कविता के माध्यम से व्यक्त करना चाहती हूं बचपन से जुड़ी यादों का शहर,यौवन की दहलीज पर कदम रखते खुद में सिमट जाने का शहर,वास्तव में देखा जाये तो बहुत कुछ समेत रखा है। शाहर न

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बेटी

27 जून 2022
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बस बहुत हो गया पापा!!!सुधीर रोज की तरह ऑफिस के लिये तैयार हुए और गेट खोलकर निकलने लगे, उन्हें घर में अजीब सी खामोशी दिखी,पर सुधीर को आफिस जाना था और निकल गए। राधा अभी सोफे पर निढ़ाल-सी पड़ी रही जो

एक लहर

19 मई 2022
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भक्ति लहर बहती हैगङ्गा के तट परकितना निर्मल कितना पावनमानों लहरों की गति के साथबहती स्वर धारामन का रोम रोम खिला देती हैहाँ ये पावन गङ्गासारा दुख हर लेती हैशहर की अनमोल धरोहरजिससे चलता है प

यादों का शहर

19 मई 2022
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ये सड़क के किनारे लगे पलाश के फूल अब भी निहारतेखड़े हैं राह किसी कीये चौराहा कटरा बाजारनेतराम की कचौरी की महकये हॉस्टल के बच्चे एक आशा और विश्वास का सागर लेकरआते प्रयागराजये विश्वविद्यालय ये स

परिंदे

19 मई 2022
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है तपन है बढ़ी जल रहा है शहर,धुएं की चादर ओढ़कर जल रहा है शहर।अब परिंदे भी तो जाएं किधर ?दरख्तों में अब न रहा है बसर।उड़ गयी तितिलियाँ अब बगानों से,अब मचा है तो देखो ,कहर ही कहर।दरख्तों में अब पड़ गयी दरा

कब हुआ है शहर अपना...

19 मई 2022
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हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही रहेकब हुआ ये शहर अपना ?सफर में ही किया सफर में बसर अपनाछोड़ आये हैं यादों भी का घर अपना।लगी थी होड़ आगे जाने की ऐ - जिंदगीन मौत आयी मुझे न मिला ज़फ़र अपना।हम मुसाफिर थे मुसाफिर ही

मेरा शहर

19 मई 2022
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मेरा शहरकुछ यादें कुछ लम्हेकुछ बंदिशेंमगर बहुत कुछदिया है इसनेमेरे होने का अस्तित्वमुझे जिंदगी के तजुर्बे, औरएक छत...जो इंसान की जरूरत हैऔर क्या चाहिए जिंदगी तुमको ?बस मुस्कान ही तोबहुत लोगों&nbs

जंग

19 मई 2022
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एक लय एक ताल एक स्वर कीमधुर ध्वनि करती करतालसम विषम से बने मकानविषम लोग अजब मानसिकताअजब गजब विचारों का समूह है शहरबहुत दूर से आए अलग अलग लोगएक मौहल्ला बनाकरबन जाते अपने सेगली कुचे सड़कबस्तियों का

गङ्गा

19 मई 2022
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गङ्गा की रेत मानो उसका आँचलफैला की संगम के तट परबुलाता है आओ बैठोमुझे भी तुम्हारी जरूरत हैसुबह भीड़ में हर कोई छूना चाहता हैमानो सारी पवित्रता भर जायेगी मेरीमगर दोपहर की चमकती रेत परकोई नही गुजरत

शहर का इश्क

19 मई 2022
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जब इश्क थक जाता हैचलते -चलतेअनजान बन जाते हैंजैसे पहचानते नहीकभी कभी भीड़ मेंभाई बहन बन करचलते हैं दोनों लगता है प्रेमी प्रेमिका नहीकभी अनजान बनकर गीत गाते हैंचलो एक बार अजनबी बन जाये हम दोन

सड़क

2 मई 2022
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खाली ही तो पन्ना हैसोचती हूँ लिख दूँमैं अल्फाज अपनेरंग मुहब्बत के सुर्ख लाल से।शहर की सड़क कभी खाली नही होतीगाड़ियों की आवाजाही लगी रहती हैबस चंद लम्हों के लिये रुक जाती हैएक सन्नाटा पसरा जाता है।गाड़ियो

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