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कहानी- विकास

20 नवम्बर 2023

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विकास 
उसका नाम विकास है। एक छोटी सी घटना के कारण उसकी दृष्टि का विकास हो गया। उसकी दुनिया अंधकारमय हो गई। हंसता खेलता हुआ बालक अब दृष्टिबाधित जीवन जीने को विवश हो गया। वह छड़ी से मार्ग का टोह लेता हुआ संघर्षपथ पर अग्रसर हो रहा है। दिव्यांगता को वह अपने दृढ़ इच्छा शक्ति और अदम्य साहस से परास्त करता हुआ सफलता के सोपान चढ़ता हुआ अनेक लोगों के लिए मिसाल बन गया है।
विकास पढ़ाई में साधारण था। उसने कक्षा सातवीं की परीक्षा दी थी। वह अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गया था। विद्यालय में गर्मी की छुट्टियां लग गई थी। सभी बच्चे गर्मी की छुट्टियां का आनंद ले रहे थे। कोई अपने नाना-नानी के यहां गया हुआ था, तो कोई अपनी बुआ के यहां। कई बच्चे गांव में ही मस्ती करते हुए नजर आते थे। गर्मियों में वैसे तो कोई घर से निकलना नहीं चाहता है। लेकिन बच्चों के पांव घर में टिकते कहां हैं? उन्हें न सर्दी लगती है, न गर्मी। उन्हें तो आनंद आता है- दोस्तों के साथ मस्ती करने में। बड़ों की नजरें बचा कर वे कब अपने दोस्तों के साथ खेलने भाग जाते पता ही नहीं चलता। कभी किसी के घर वे खेलते मिलते या गांव के पीपल या बरगद की छाया में भौंरा-बांटी खेलते हुए पाए जाते। आम और इमली के लालच में भरी दोपहरी में गुलेल लेकर निकल पड़ते। कई बार तो हुए गांव के तालाब में धूम मचाते हुए मिलते। गांव में बच्चों का बचपन कुछ ऐसा ही हुआ करता है। विकास का बचपन भी इसी तरह व्यतीत हो रहा था।

छत्तीसगढ़ के गांवों में वैवाहिक कार्यक्रम प्रायः वसंत ऋतु से प्राप्त प्रारंभ होकर ग्रीष्मकाल पर्यंत संपन्न होता है। विकास के गांव में भी बहुत से वैवाहिक कार्यक्रम इस वर्ष संपन्न हो चुके थे किंतु तब परीक्षा काल के कारण घर वालों ने इससे दूरी बनाकर रखने के लिए कहा था। इसलिए उसे दबे मन से इन कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर ही मिल पाता था। अब जब गर्मी की छुट्टियां लग गई थी। तब विकास के दोस्त राजू के चाचा का विवाह होना तय हुआ था। राजू ने विकास से कहा-विकास तुम तुम मेरे मोनू चाचा के बारात में चलोगे न।
विकास ने कहा-"पिताजी जाने नहीं देंगे।"
राजू- "क्यों नहीं जाने देंगे?"
विकास-"पता नहीं क्यों?"
राजू-नहीं "तुम्हें चलना ही होगा। तुम्हें मेरी कसम।"
विकास-"राजू! तुम कसम मत दो। मैं प्रयास करूंगा। पिताजी से कहने का साहस नहीं होता है। मां से बात करके देखूंगा।"
राजू- "ठीक है। तुम अपनी मां से बात करना।"
घर जाकर विकास रात में धीरे से मां से राजू के चाचा मोनू के बारात में जाने के लिए कहता है। मां सुनीता मना करती है। "तुम अभी बच्चे हो। मैं तुमको नहीं भेजूंगी।" तब विकास रूठ जाता है। भोजन के लिए बुलाए जाने पर भी वह नहीं आता है। मां धीरे से उसे प्यार से सहलाते-बहलाते हुए कहती है- "ठीक है तुम्हारे पिताजी आएंगे, तो मैं उनसे बात करूंगी।" तब विकास अपनी मां को गले लगा लेता है। "मां तुम पिताजी से कहोगी, तो मना नहीं करेंगे। मना करेंगे भी तो तुम उसे मना लोगी।" मां ने कहा- "चल भोजन कर ले।" विकास उत्साह भरे मन से भोजन करने के लिए गया। आप तो उसके मन में लड्डू फूट रहे थे। बारात में जाने के लिए अच्छे कपड़े जूते तैयार कर सो गया।
मां ने पिताजी को मना लिया था। सुबह विकास को बारात में जाने की अनुमति मिल गई थी। मां ने बारात में धूम न करने की चेतावनी दे दी थी। "ठीक है, ठीक है मैं वहां मस्ती नहीं करूंगा" कहता हुआ विकास जल्दी से तैयार होकर अपने दोस्त राजू के घर गया।

बारात जाने की सभी तैयारियां पूरी हो गई थी। विकास को देखकर राजू बहुत प्रसन्न हुआ। वे दोनों एक ही गाड़ी में बैठकर गपशप मस्ती करते हुए बारात गए। मन तो विकास को धूम न करने की बात कही थी। लेकिन बच्चे बड़ों की बातों पर कान नहीं देते हैं। उन्हें अपना काम निकलना होता है, इसलिए सुर में सुर मिला देते हैं। घर से निकलते ही बच्चे अपने मन की करने लग जाते हैं। बच्चों की इसी प्रवृत्ति को देखकर बड़े उन्हें बाहर भेजने में कतराते हैं। रास्ते भर राजू और विकास गाड़ी में जोर-जोर से हंसते, चिल्लाते, गुदगुदाते रहे। यह उनका सहज बाल स्वभाव है। सड़क के किनारे के पेड़ों को तेजी से भागते हुए देखकर वे आश्चर्य भी व्यक्त करते। अंततः वे अपने गंतव्य को पहुंच ही गए।
बारात स्वागत के लिए डीजे लगाया गया था। उसकी धुन पर लोग मस्त होकर नाच रहे थे। राजू और विकास भी उसमें शामिल हो गए। गांव की नर-नारियां सब बारातियों को देखने के लिए आए हुए थे। वहां की युवतियों को देखकर बाराती और धूम धड़ाके से नाचने लगे थे। बारात स्वागत में पटाखों की लड़ियां लगाई गई थीं। बीच-बीच में बम पटाखे भी लगाए गए थे। जैसे ही लड़ियों में अग्नि का संपर्क हुआ। पड़-पड़, पड़-पड़ पटाखे की आवाज़ गूंजायमान होने लगी। चारों तरफ धूल-धुआं उठने लगा। लड़ियों के बीच में लगे हुए बम पटाखे जब फूटने लगे। बम पटाखों की ध्वनियों को सुनकर लोग सहमकर अपने दोनों कानों को दोनों हथेलियां से बंद कर लेते थे। लोग पटाखे फूटने के समय किनारे हो गए थे। नाचने वाले लड़कों की टोली अभी भी बड़ी तेजी से उत्साह पूर्वक नाचने में लगे हुए थे। तभी एक बम फटाका बहुत तीव्र ध्वनि से फूटा और एक चिंगारी बड़ी तेजी से लड़कों की टोली की ओर जाते हुए दिखी। उधर पटाखों के फूटने का क्रम लगातार चल रहा था। इससे पहले की किसी को कुछ समझ आता नाचने वाले लड़को की टोली में से एक लड़का वहीं धड़ाम से गिर पड़ा। वह विकास था। 
लोगों ने देखा विकास का चेहरा झुलस गया था। आंखें खुल नहीं रही थीं। संभवतः एक पटाखा छटककर उस तक पहुंच कर फूट गया था। …तुरंत उसे पास के चिकित्सालय में ले जाया गया। प्राथमिक उपचार के पश्चात उसे शहर के बड़े चिकित्सालय में भेज दिया गया। शहर में आयुष्मान कार्ड से उसकी चिकित्सा तो अच्छी हुई किंतु लाख प्रयत्न के बाद भी आंखों की ज्योति वापस न लायी जा सकी। इस तरह एक वर्ष व्यतीत हो गया।

विकास के लिए घर में समय काटना मुश्किल हो रहा था। इस कठिन समय में विकास के माता-पिता दोनों उसका हौसला बढ़ाते रहते थे। इस समय इससे अधिक वे कर भी क्या सकते थे। विकास सदा दूसरों पर आश्रित होकर रहना नहीं चाहता था। उसके मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा थी। 
एक बार गांव के ही सेवानिवृत्त शिक्षक धनउ लाल उसके घर आए। उसने विकास के मन की बात को टटोलकर कहा- विकास तुम दिन भर घर में रहते हो। इससे तुम्हारा समय बहुत कठिनता से व्यतीत होता है।
 विकास उनका आदर करता था। उसने कहा- "गुरुजी मैं कुछ करना चाहता हूं। मैं जीवन भर दूसरों पर बोझ नहीं बनना चाहता।"
गुरुजी-"क्या करने की तुम सोचे हो।"
विकास- "कुछ भी।"
गुरुजी- "कुछ भी कहने से काम नहीं बनेगा।"
विकास- "कुछ ऐसा करना, जिससे लोग मेरी दिव्यांगता की हंसी न उड़ाएं।"
गुरुजी- "तुम जो चाहते हो, वह शिक्षा से ही संभव हो सकती है।" शिक्षा उन्नति का मूल है। शिक्षा की ज्योति से संपूर्ण संसार देखा जा सकता है।
 विकास-"क्या अब भी पढ़ना मेरे लिए संभव है?"
गुरुजी- "क्यों नहीं। अभी तुम्हे चौदह वर्ष पूरा नहीं हुआ है। गांव के ही सरकारी विद्यालय में जहां तुम पढ़ रहे थे। वहीं पढ़ सकते हो। कल तुम अपने पिता के साथ वहां चले जाना। …और कोई समस्या हो तो मुझे बताना।"

गुरुजी की बातों से विकास की हिम्मत बढ़ी। उसने अपनी पढ़ाई जारी रखने की ठान लिया। दूसरे ही दिन वह अपने पिता के साथ विद्यालय पहुंच गया। पहले तो शिक्षकों ने सामान्य विद्यालय में उसकी पढ़ाई के विषय में चिंता व्यक्त करने लगे। विकास को चौदह वर्ष की अवस्था पूरा करने में कुछ समय शेष था। शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत उसे शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता था। प्रधान पाठक की अनुमति से उसने कक्षा आठवीं में प्रवेश लिया। 
दृढ़ इच्छा शक्ति से असंभव भी संभव हो जाते हैं। यद्यपि विकास के समक्ष चुनौतियां बहुत अधिक थीं किंतु उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति से सारे असंभव कार्य संभव होने लगे। प्रारंभ में वह कक्षा के अन्य विद्यार्थियों के साथ बैठकर-सुनकर अध्ययन करने लगा। धीरे-धीरे उसकी दिनचर्या अन्य बच्चों की तरह सामान्य होने लगी। विद्यालय में उसका मन रमने लगा। वह छड़ी के सहारे स्वयं से चलने का अभ्यस्त हो गया। पहले की तुलना में अब उसकी बुद्धि कुशाग्र हो गई थी। शिक्षक भी कक्षा में उसकी प्रशंसा करने लगे थे। अन्य बच्चों की तुलना में वह शिक्षकों द्वारा किए जाने वाले प्रश्नों का उत्तर सटीक देता था। पाठ भी उसे शीघ्रता से याद हो जाता था। शासन की ओर से शीघ्र उसे ब्रेल लिपि सिखाने वाले शिक्षक, पुस्तक आदि की व्यवस्था कर दी गई।
कुछ समय बीतने पर उसके अध्ययन की विशेष आवश्यकता वाले विद्यालय में शासन की ओर से कर दिया गया। वहां रहने और अध्ययन दोनों की सुविधा विशेष रूप से उपलब्ध थी। विकास जैसे अनेक बच्चे वहां अध्यनरत थे। वहां के शिक्षक विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की विभिन्न कमजोरियों का पता लगाकर उसके अनुसार विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से खेल-खेल में अध्ययन संपन्न कराते थे। विकास की पढ़ाई में और अधिक मन लग गया।

प्रतिवर्ष अच्छे अंकों से विभिन्न परीक्षाएं उत्तीर्ण करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा। वह आई.ए.एस. बनना चाहता था। उसने अब अपना लक्ष्य लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता को बना लिया और की जान से उसे पूरा करने में जुट गया। उसके अध्ययन और लगन को देखकर उसके माता-पिता सहित गांव वाले दांतों तले उंगली दबा लेते थे। शीघ्र ही उसने आई.ए.एस. प्री परीक्षा उत्तीर्ण कर लिया। अब वह लिखित परीक्षा की तैयारी में दिन-रात एक करने लगा है। उसके अध्ययन को देखकर लगता है कि निश्चित ही वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। विकास अब दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनता जा रहा है। कहा भी गया है-
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथै:।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

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