हर रोज नई किस्से नई कहानी जुड़ते
जाता है मौसम बदल जाते है
दिन हफ्ते बन जाते है हफ्ते महीने औऱ
महीने सालो में बदल जाते है कोई हस्ते
रहता है कोई रोते रहता कोई कहता कर्मो
का फल है भुगतना तो पड़ेगा ही
कभी गमो की सागर में डुबोता है तो
कभी खुसियो के पलको में झूलता है
बड़ी अजीब अजीब से है खेल रचता ये
ज़िंदगी भी