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खूने-इश्क

3 फरवरी 2015

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आह ये मुरझाया गुलाब जाने कब खिलेगा कब इसमें लाल रंग का खूने-इश्क बहेगा तोड़ा है जमाने ने जिस शाख से इसको जाने कब उन बाहों का फिर साथ मिलेगा फरियाद कर सका न वो, खामोश रह गया लेकिन टूटकर भी इतना जोश रह गया महकता रहा, सजता रहा वह महफिलों में फिर एक दिन सूखकर मायूस रह गया आशियां में पड़ा है किसी गुलदान में या बिकने को रखा है किसी दुकान में कातिल हो गई उनकी ही उंगलियां ये गुलाब खिला था यहां जिसके मकान में
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खूने-इश्क

3 फरवरी 2015
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आह ये मुरझाया गुलाब जाने कब खिलेगा कब इसमें लाल रंग का खूने-इश्क बहेगा तोड़ा है जमाने ने जिस शाख से इसको जाने कब उन बाहों का फिर साथ मिलेगा फरियाद कर सका न वो, खामोश रह गया लेकिन टूटकर भी इतना जोश रह गया महकता रहा, सजता रहा वह महफिलों में फिर एक दिन सूखकर मायूस रह गया आशियां में पड़ा है किसी गुलदा

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चांद से आज भी मेरी बहुत दूरी है

6 फरवरी 2015
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चांद से आज भी मेरी बहुत दूरी है यह जमीं पे रहने की मजबूरी है दिल लगाने से ये दिल जल जाए सही इस लगन के बिना जिंदगी अधूरी है तुम जो मिल जाओ तो सब कुछ मिल जाए ना मिलो तो तबियत में फकीरी है नींद खुल जाए अपनी ही मौत से पहले इसलिए ख्वाबों का टूट जाना जरूरी है

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