shabd-logo

चांद से आज भी मेरी बहुत दूरी है

6 फरवरी 2015

348 बार देखा गया 348
चांद से आज भी मेरी बहुत दूरी है यह जमीं पे रहने की मजबूरी है दिल लगाने से ये दिल जल जाए सही इस लगन के बिना जिंदगी अधूरी है तुम जो मिल जाओ तो सब कुछ मिल जाए ना मिलो तो तबियत में फकीरी है नींद खुल जाए अपनी ही मौत से पहले इसलिए ख्वाबों का टूट जाना जरूरी है
1

खूने-इश्क

3 फरवरी 2015
0
1
0

आह ये मुरझाया गुलाब जाने कब खिलेगा कब इसमें लाल रंग का खूने-इश्क बहेगा तोड़ा है जमाने ने जिस शाख से इसको जाने कब उन बाहों का फिर साथ मिलेगा फरियाद कर सका न वो, खामोश रह गया लेकिन टूटकर भी इतना जोश रह गया महकता रहा, सजता रहा वह महफिलों में फिर एक दिन सूखकर मायूस रह गया आशियां में पड़ा है किसी गुलदा

2

चांद से आज भी मेरी बहुत दूरी है

6 फरवरी 2015
0
0
0

चांद से आज भी मेरी बहुत दूरी है यह जमीं पे रहने की मजबूरी है दिल लगाने से ये दिल जल जाए सही इस लगन के बिना जिंदगी अधूरी है तुम जो मिल जाओ तो सब कुछ मिल जाए ना मिलो तो तबियत में फकीरी है नींद खुल जाए अपनी ही मौत से पहले इसलिए ख्वाबों का टूट जाना जरूरी है

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए