खूने-इश्क
आह ये मुरझाया गुलाब जाने कब खिलेगा
कब इसमें लाल रंग का खूने-इश्क बहेगा
तोड़ा है जमाने ने जिस शाख से इसको
जाने कब उन बाहों का फिर साथ मिलेगा
फरियाद कर सका न वो, खामोश रह गया
लेकिन टूटकर भी इतना जोश रह गया
महकता रहा, सजता रहा वह महफिलों में
फिर एक दिन सूखकर मायूस रह गया
आशियां में पड़ा है किसी गुलदा