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कृष्णा सोबती / परिचय

29 फरवरी 2016

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अपनी संयमित अभिव्यक्ति और सुथरी रचनात्मकता के लिए लोकप्रिय कृष्णा सोबती जी का जन्म १८ फरवरी १९२५ को गुजरात (अब पाकिस्तान)) में हुआ था| इनकी पहली कहानी 'लामा' थी, जो 1950 ई. में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी की कथा भाषा को विलक्षण ताज़गी़ दी है। उनके भाषा संस्कार के घनत्व, जीवंत प्रांजलता और संप्रेषण ने हमारे वक्त के कई पेचीदा सत्य उजागर किए हैं। डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अंधेरे के, ज़िन्दगी़नामा, ऐ लड़की, दिलोदानिश, हम हशमत, और समय सरगम तक उनकी कलम ने उत्तेजना, आलोचना विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसों की जो फिज़ा साहित्य में पैदा की है उसका स्पर्श पाठक लगातार महसूस करता रहा है। हालाँकि कृष्णा सोबती जी की कहानियों को लेकर काफ़ी विवाद हुआ। विवाद का कारण इनकी मांसलता है। स्त्री होकर ऐसा साहसी लेखन करना सभी लेखिकाओं के लिए सम्भव नहीं है। डॉ. रामप्रसाद मिश्र ने कृष्णा सोबती की चर्चा करते हुए दो टूक शब्दों में लिखा है: उनके ज़िन्दगीनामाजैसे उपन्यास और मित्रो मरजानीजैसे कहानी संग्रहों में मांसलता को भारी उभार दिया गया है...केशव प्रसाद मिश्र जैसे आधे-अधूरे सैक्सी कहानीकार भी कोसों पीछे छूट गए। बात यह है कि साधारण शरीर की अकेलीकृष्णा सोबती हों या नाम निहाल दुकेली, मन्नु-भण्डारी या प्राय: वैसे ही कमलेश्वर...अपने से अपने कृतित्व को बचा नहीं पाए...कृष्णा सोबती की जीवनगत यौनकुंठा उनके पात्रों पर छाई रहती है।“


पुरस्कार: साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता समेत कई राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती ने पाठक को निज के प्रति सचेत और समाज के प्रति चैतन्य किया है।

सम्मान: आपको हिंदी अकादमी दिल्ली की ओर से वर्ष २०००-२००१ के शलाका सम्मान से सम्मानित किया गया है।(साभार:हिंदी गद्यकोश)

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रचनाएँ
krishnasobti
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बेहद बेबाक कथाकार कृष्णा सोबती जी की चर्चित कहानियां
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कृष्णा सोबती / परिचय

29 फरवरी 2016
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अपनीसंयमित अभिव्यक्ति और सुथरी रचनात्मकता के लिए लोकप्रिय कृष्णा सोबती जी का जन्म १८फरवरी १९२५ को गुजरात (अब पाकिस्तान)) में हुआ था| इनकी पहली कहानी 'लामा' थी, जो 1950 ई. में प्रकाशित हुई थी। उन्होंनेहिंदी की कथा भाषा को विलक्षण ताज़गी़ दी है। उनके भाषा संस्कार के घनत्व, जीवंत प्रांजलता और संप्रेषण

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कहानी : दादी-अम्मा / कृष्णा सोबती

29 फरवरी 2016
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बहारफिर आ गई। वसन्त की हल्की हवाएँ पतझर के फीके ओठों को चुपके से चूम गईं। जाड़े नेसिकुड़े-सिकुड़े पंख फड़फड़ाए और सर्दी दूर हो गई। आँगन में पीपल के पेड़ पर नएपात खिल-खिल आए। परिवार के हँसी-खुशी में तैरते दिन-रात मुस्कुरा उठे। भरा-भरायाघर। सँभली-सँवरी-सी सुन्दर सलोनी बहुएँ। चंचलता से खिलखिलाती बेटिया

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कहानी : सिक्का बदल गया / कृष्णा सोबती

1 मार्च 2016
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खद्दरकी चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरियाके किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी। दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रहीथी। शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रक्खे और 'श्रीराम, श्रीराम' करती पानी में हो ली। अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कारकिया, अपनी उनीदी आंखों पर छींटे दिये औरपानी से लिपट गयी! च

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कहानी : मेरी माँ कहाँ / कृष्णा सोबती

1 मार्च 2016
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बहुतदिन के बाद उसने चाँद-सितारे देखे हैं। अब तक वह कहाँ था? नीचे, नीचे, शायद बहुत नीचे...जहाँ की खाई इनसान के खून से भर गयी थी।जहाँ उसके हाथ की सफाई बेशुमार गोलियों की बौछार कर रही थी। लेकिन, लेकिन वह नीचे न था। वह तो अपने नए वतन की आंजादी के लिएलड़ रहा था। वतन के आगे कोई सवाल नहीं,अपना कोई खयाल नही

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