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jaishankarprasad

गद्यसंकलन

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हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार जयशंकर प्रसाद जी की चर्चित एवं लोकप्रिय रचनाओं का संकलन... 

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पुस्तक के भाग

1

जयशंकर प्रसाद : परिचय

2 मार्च 2016
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हिन्दीके महान कवि, नाटकार, कथाकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे जयशंकरप्रसाद| हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद जीका जन्म माघ शुक्ल 10, संवत्‌ 1889 वि. में काशी केसरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे औरइनके पिता बाबू देवीप्रसाद

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कहानी : चूड़ीवाली / जयशंकर प्रसाद

3 मार्च 2016
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 “अभी तो पहना गई हो।” “बहूजी, बड़ी अच्छी चूडिय़ाँ हैं। सीधे बम्बई से पारसल मँगाया है।सरकार का हुक्म है; इसलिए नयी चूडिय़ाँ आते ही चली आतीहूँ।” “तो जाओ, सरकार को ही पहनाओ, मैं नहीं पहनती।” “बहूजी! जरा देख तो लीजिए।” कहती मुस्कराती हुई ढीठ चूड़ीवाली अपना बक्स खोलने लगी। वहपचीस वर्ष की एक गोरी छरहरी स्

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कहानी : चित्तौड़-उद्धार / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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दीपमालाएँआपस में कुछ हिल-हिलकर इंगित कर रही हैं,किन्तु मौन हैं। सज्जित मन्दिर मेंलगे हुए चित्र एकटक एक-दूसरे को देख रहे हैं, शब्द नहीं हैं। शीतल समीर आता है, किन्तु धीरे-से वातायन-पथ के पार हो जाता है, दो सजीव चित्रों को देखकर वह कुछ नहीं कह सकता है। पर्यंकपर भाग्यशाली मस्तक उन्नत किये हुए चुपचाप बै

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कहानी : गुंडा /जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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वहपचास वर्ष से ऊपर था| तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ औरदृढ़ था| चमड़े पर झुर्रियाँ नहीं पड़ी थीं| वर्षा की झड़ी में, पूस की रातों की छाया में, कड़कती हुई जेठ की धुप में, नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था| उसकी चढ़ी हुई मूंछ बिच्छू के डंक की तरह, देखनेवालों के आँखों में चुभती थीं| उसका सांवला रंग सां

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कहानी : छोटा जादूगर/ जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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कार्निवलके मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हंसी और विनोद का कलनाद गूंज रहा था। मैं खड़ाथा उस छोटे फुहारे के पास, जहां एक लड़का चुपचाप शराब पीनेवालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्सीपड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुंह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्यकी रे

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कहानी : नूरी / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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भाग 1 “ऐ; तुम कौन?“......”“बोलते नहीं?” “......” “तो मैं बुलाऊँ किसी को—” कहते हुए उसने छोटा-सा मुँह खोला ही था कि युवक ने एक हाथ उसके मुँह पर रखकरउसे दूसरे हाथ से दबा लिया। वह विवश होकर चुप हो गयी। और भी, आज पहला ही अवसर था, जब उसने केसर,कस्तूरी और अम्बर से बसा हुआयौवनपूर्ण उद्वेलित आलिंगन पाया था।

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कहानी : चंदा / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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चैत्र-कृष्णाष्टमीका चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश 'चन्द्रप्रभा' के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंगको छोड़कर धवलित हो रहे हैं; कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरेबह रही है। एक शिला-तल पर बैठी हुई कोलकुमारी सुरीले स्वर से-'दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे! दरद' ...गा रही है। गीत अधूरा ही ह

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कहानी : अपराधी / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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वनस्थलीके रंगीन संसार में अरुण किरणों ने इठलाते हुए पदार्पण किया और वे चमक उठीं, देखा तो कोमल किसलय और कुसुमों की पंखुरियाँ, बसन्त-पवन के पैरों के समान हिल रही थीं। पीले पराग काअंगराग लगने से किरणें पीली पड़ गई। बसन्त का प्रभात था। युवती कामिनी मालिन का काम करती थी। उसे और कोई न था। वह इसकुसुम-कानन

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कहानी : गुलाम / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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फूलनहीं खिलते हैं, बेले की कलियाँ मुरझाई जा रही हैं।समय में नीरद ने सींचा नहीं, किसी माली की भी दृष्टि उस ओर नहींघूमी; अकाल में बिना खिले कुसुम-कोरकम्लान होना ही चाहता है। अकस्मात् डूबते सूर्य की पीली किरणों की आभा से चमकता हुआएक बादल का टुकड़ा स्वर्ण-वर्षा कर गया। परोपकारी पवन उन छींटों को ढकेलकर उ

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कहानी : इंद्रजाल / जयशंकर प्रसाद

4 मार्च 2016
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गाँवके बाहर, एक छोटे-से बंजर में कंजरों का दलपड़ा था। उस परिवार में टट्टू, भैंसे और कुत्तों को मिलाकर इक्कीसप्राणी थे। उसका सरदार मैकू, लम्बी-चौड़ी हड्डियोंवाला एक अधेड़पुरुष था। दया-माया उसके पास फटकने नहीं पाती थी। उसकी घनी दाढ़ी और मूँछों केभीतर प्रसन्नता की हँसी छिपी ही रह जाती। गाँव में भीख माँ

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