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प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी की कहानियों में से कुछ चयनित कहानियां  

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पुस्तक के भाग

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मन्नू भंडारी / परिचय

19 मार्च 2016
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जन्म: 03 अप्रैल 1931, भानपुरा, मध्यप्रदेश, भारत।अनुभव: दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हिंदी प्राध्यापिका के रूप में कार्य। दो वर्ष विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजन पीठ कीअध्यक्ष।कृतियाँ: चार उपन्यास और आठ कहानी-संग्रह।पुरस्कार: व्यास सम्मान।सम्पर्क: 103,हौजखास अपार्टमेंट, नई

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कहानी : एक प्लेट सै़लाब / मन्नू भंडारी

19 मार्च 2016
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मईकी साँझ! साढ़े छह बजे हैं। कुछ देर पहले जोधूप चारों ओर फैली पड़ी थी, अब फीकी पड़कर इमारतों की छतों परसिमटकर आयी है, मानो निरन्तर समाप्त होते अपनेअस्तित्व को बचाये रखने के लिए उसने कसकर कगारों को पकड़ लिया हो। आग बरसाती हुई हवा धूप और पसीने की बदबू से बहुत बोझिल होआयी है। पाँच बजे तक जितने भी लोग आ

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कहानी : यही सच है / मन्नू भंडारी

19 मार्च 2016
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सामनेआंगन में फैली धूप सिमटकर दीवारों पर चढ़ गई और कन्धे पर बस्ता लटकाए नन्हे-नन्हेबच्चों के झुंड-के-झुंड दिखाई दिए, तो एकाएक ही मुझे समय का आभास हुआ।घंटा भर हो गया यहाँ खड़े-खड़े और संजय का अभी तक पता नहीं! झुंझलाती-सी मैं कमरेमें आती हूँ। कोने में रखी मेज़ पर किताबें बिखरी पड़ी हैं, कुछ खुली, कुछ

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कहानी : सयानी बुआ / मन्नू भंडारी

19 मार्च 2016
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सबपर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसेसब मशीनें हों, जो कायदे में बंधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं। ठीक पाँच बजे सबलोग उठ जाते, फिर एक घंटा बाहर मैदान में टहलनाहोता, उसके बाद चाय-दूध होता।उसके बादअन्नू को पढने के लिए बैठना होता। भाई साहब भी तब अ

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कहानी : स्त्री सुबोधिनी / मन्नू भंडारी

19 मार्च 2016
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प्यारीबहनों, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरतहूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार करचुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुजरी हूँ, जैसा अहम अनुभव मैंने पाया... चाहती हूँ, बिना किसी लाग-लपेट के उसे आपके सामने रखूँ और

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कहानी : मुक्ति / मन्नू भंडारी

19 मार्च 2016
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.... और अंततः ब्रह्म मुहूर्त में बाबूने अपनी आखिरी साँस ली। वैसे पिछले आठ-दस दिन से डाक्टर सक्सेना परिवार वालों सेबराबर यही कह रहे थे --”प्रार्थना कीजिए ईश्वर से कि वह अबइन्हें उठा ले...वरना एक बार अगर कैन्सर का दर्द शुरू हो गया तो बिल्कुल बर्दाश्तनहीं कर पाएँगे ये।“ परिवार वालों के अपने मन में भीचा

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