कहानी : स्त्री सुबोधिनी / मन्नू भंडारी
प्यारीबहनों, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरतहूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार करचुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुजरी हूँ, जैसा अहम अनुभव मैंने पाया... चाहती हूँ, बिना किसी लाग-लपेट के उसे आपके सामने रखूँ और