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महान व्यंग्यकार एवं लेखक हरिशंकर परसाईं जी का चयनित साहित्य संग्रह  

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पुस्तक के भाग

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जीवन परिचय / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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हरिशंकरपरसाईं का जन्म 22 अगस्त¸ 1924 को जमानी¸ होशंगाबाद¸ मध्य प्रदेश में हुआ था। हिंदी केप्रसिद्ध कवि और लेखक थे। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधाका दरजा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधिसे उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमार

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कहानी : जैसे उनके दिन फिरे / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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एकथा राजा। राजा के चार लड़के थे। रानियाँ?रानियाँ तो अनेक थीं, महल में एक ‘पिंजरापोल’ ही खुला था। पर बड़ी रानी ने बाकी रानियों के पुत्रों कोजहर देकर मार डाला था। और इस बात से राजा साहब बहुत प्रसन्न हुए थे। क्योंकि वेनीतिवान् थे और जानते थे कि चाणक्य का आदेश है, राजा अपने पुत्रों को भेड़िया समझे। बड़ी

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कहानी : सन् 1950 ईसवी / हरिशंकर परसाई

24 फरवरी 2016
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बाबूगोपाल चन्द्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझायाथा और लोग समझ भी गये थे कि अगर वे स्वतन्त्रता-संग्राम में दो बार जेल-‘ए क्लास’ में न जाते, तो भारत आज़ाद होता ही नहीं। तारीख़ 3 दिसम्बर 1950 की रात को बाबू गोपाल चन्द्र अपनेभवन के तीसरे मंज़िल के सातवें कमरे में तीन फ़ीट ऊँचे पलंग के एक

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कहानी : चूहा और मैं / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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चाहतातो लेख का शीर्षक मैं और चूहा रख सकता था। पर मेरा अहंकार इस चूहे ने नीचे करदिया। जो मैं नहीं कर सकता, वह मेरे घर का यह चूहा कर लेता है।जो इस देश का सामान्‍य आदमी नहीं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ करके बता दिया। इस घर में एक मोटाचूहा है। जब छोटे भाई की पत्‍नी थी, तब घर में खाना बनता था। इस बीच

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कहानी : भोलाराम का जीव / हरिशंकर परसाईं

24 फरवरी 2016
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ऐसाकभी नहीं हुआ था। धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश केआधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठेचित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे। गलती पकड़ में ही नहीं आरही थी। आखिर उ

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