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कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था !

5 दिसम्बर 2015

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वो ग़ज़ल पढने में लगता भी ग़ज़ल जैसा था,
सिर्फ़ ग़ज़लें नहीं, लहजा भी ग़ज़ल जैसा था !


वक़्त ने चेहरे को बख़्शी हैं ख़राशें वरना,
कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था !


तुमसे बिछडा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी,
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था !


कोई मौसम भी बिछड कर हमें अच्छा ना लगा,
वैसे पानी का बरसना भी ग़ज़ल जैसा था !


नीम का पेड था, बरसात भी और झूला था,
गांव में गुज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था !


वो भी क्या दिन थे तेरे पांव की आहट सुन कर,
दिल का सीने में धडकना भी ग़ज़ल जैसा था !


इक ग़ज़ल देखती रहती थी दरीचे से मुझे,
सोचता हूं, वो ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था !


कुछ तबीयत भी ग़ज़ल कहने पे आमादा थी,
कुछ तेरा फ़ूट के रोना भी ग़ज़ल जैसा था !


मेरा बचपन था, मेरा घर था, खिलौने थे मेरे,
सर पे मां-बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था !


नर्म-ओ-नाज़ुक-सा ­, बहुत शोख़-सा, शर्मीला-सा,
कुछ दिनों पहले तो "राना" भी ग़ज़ल जैसा था !


- Munawwar Rana

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रचनाएँ
Shayar
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दिल की बात !
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इस घर को बचाये कैसे !

5 दिसम्बर 2015
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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे,तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे,घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है"फैयाज़"पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे !

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कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था !

5 दिसम्बर 2015
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वो ग़ज़ल पढने में लगता भी ग़ज़ल जैसा था,सिर्फ़ ग़ज़लें नहीं, लहजा भी ग़ज़ल जैसा था !वक़्त ने चेहरे को बख़्शी हैं ख़राशें वरना,कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था !तुमसे बिछडा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी,इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था !कोई मौसम भी बिछड कर हमें अच्छा ना लगा,वैसे पानी का बरसना भी ग़ज़ल जैसा था !न

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चेहरा .....

5 दिसम्बर 2015
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परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहताकिसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता !

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बेटियाँ धान-सी होती हैं !

5 दिसम्बर 2015
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बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से।बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में।बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैंजो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल में।बेटियाँ पतंगें होती हैंजो कट जाया करती हैं

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दर्द की जब भी नुमाईश हो गयी !

5 दिसम्बर 2015
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दर्द की जब भी नुमाईश हो गयीबज़्म में कितनी नवाज़िश हो गयीजब्ते सहारा से रिहा मैं हो गयाजब मेरी आँखों से बारिश हो गयीये मोहब्बत है या कोई बेख़ुदीजो मिला उसकी ही ख्वाईश हो गयीमैंने की तामील उन अल्फाज़ो कीआपकी जबभी नवाज़िश हो गयीकिसके सर इल्जाम देते हो अमोलजबकि खुद से खुदकी साजिश हो गयी               अमोल

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जब जुनूने इश्के हासिल देखता हूँ !

5 दिसम्बर 2015
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जब जुनूने इश्के हासिल देखता हूँमैं तुफानो में ही साहिल देखता हूँशक्लो सूरत से मुझे क्या वास्ता हैमैं तो इन्सानो का बस दिल देखता हूँखूब उसको अपने दिल में दी पनाहेमेरे जज्बो का जो कातिल देखता हूँभूल जाता हूँ जहाँ की फिक्र कोजब कही मस्तो की महफ़िल देखता हूँबैठ जाता हूँ मैं सजदो में वही पेजब कभी रज़्ज़ब का

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दया करो हे दयालु नेता !

5 दिसम्बर 2015
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तुम्हीं हो भाषण, तुम्हीं हो तालीदया करो हे दयालु नेतातुम्हीं हो बैंगन, तुम्हीं हो थालीदया करो हे दयालु नेतातुम्हीं पुलिस हो, तुम्हीं हो डाकूतुम्हीं हो ख़ंजर, तुम्हीं हो चाकूतुम्हीं हो गोली, तुम्हीं दुनालीदया करो हे दयालु नेतातुम्हीं हो इंजन, तुम्हीं हो गाड़ीतुम्हीं अगाड़ी, तुम्हीं पिछाड़ीतुम्हीं हो

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बाबू जी !!!!!!!!!!!!!!

5 दिसम्बर 2015
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                                                                  घर की बुनियादें दीवारें बामों-दर थे बाबू जी                                                                  सबको बाँधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी                                                                  तीन मुहल्लों में उ

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हम बने ही

29 दिसम्बर 2015
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हम बने ही थे तबाह होने के लिए..तेरा छोड़ जाना तो महज़ इक बहाना था.!!

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मेरा दिल !!!!💖

1 जनवरी 2016
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मेरे दिल को तुझसे इतना प्यार सा क्यों हैतू है मेरे लिए ही बनी ये विश्वास सा क्यों हैमुझे तो खुद में कुछ नया नज़र आता नहींआइना मुझे देखकर फिर हैरान सा क्यों हैन तो मैं बाइबल हूँ ,न गीता और न कुरानहर कोई मुझे पढने को फिर बेताब सा क्यों हैतेरा दिल है सुन्दर शंख में जोंक की तरहचेहरा तेरा लगता फिर गुलाब स

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इश्क़ के मारे

1 जनवरी 2016
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हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है सब दिल की शरारत है आँखों का बहाना है!💞💖💟💓

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लफ़्ज़े-मोहब्बत 👀

1 जनवरी 2016
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इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है ये किसका तसव्वुर है ये किसका फ़साना है जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है !❣❣❣❣

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मियाँ मैं शेर हूँ ,🐯

2 जनवरी 2016
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मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जातीमैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जातीमैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा थामैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जातीजहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा हैजहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जातीमोहब्बत का ये जज्बा जब ख़ुदा कि देन ह

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