वो ग़ज़ल पढने में लगता भी ग़ज़ल जैसा था,
सिर्फ़ ग़ज़लें नहीं, लहजा भी ग़ज़ल जैसा था !
वक़्त ने चेहरे को बख़्शी हैं ख़राशें वरना,
कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था !
तुमसे बिछडा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी, कोई मौसम भी बिछड कर हमें अच्छा ना लगा, नीम का पेड था, बरसात भी और झूला था, वो भी क्या दिन थे तेरे पांव की आहट सुन कर, इक ग़ज़ल देखती रहती थी दरीचे से मुझे, कुछ तबीयत भी ग़ज़ल कहने पे आमादा थी, मेरा बचपन था, मेरा घर था, खिलौने थे मेरे, नर्म-ओ-नाज़ुक-सा , बहुत शोख़-सा, शर्मीला-सा, - Munawwar Rana
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था !
वैसे पानी का बरसना भी ग़ज़ल जैसा था !
गांव में गुज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था !
दिल का सीने में धडकना भी ग़ज़ल जैसा था !
सोचता हूं, वो ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था !
कुछ तेरा फ़ूट के रोना भी ग़ज़ल जैसा था !
सर पे मां-बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था !
कुछ दिनों पहले तो "राना" भी ग़ज़ल जैसा था !