दर्द की जब भी नुमाईश हो गयी
बज़्म में कितनी नवाज़िश हो गयी
जब्ते सहारा से रिहा मैं हो गया
जब मेरी आँखों से बारिश हो गयी
ये मोहब्बत है या कोई बेख़ुदी
जो मिला उसकी ही ख्वाईश हो गयी
मैंने की तामील उन अल्फाज़ो की
आपकी जबभी नवाज़िश हो गयी
किसके सर इल्जाम देते हो अमोल
जबकि खुद से खुदकी साजिश हो गयी
अमोल