क्या यही है देश की तकदीर
- अंचल ओझा, अम्बिकापुर
जहां रिश्वत, प्रलोभन, लोभ और वोट के बाजार में,
पैदा होता देश का तारणहार है,
जहां सत्ता की भूख से, कुर्सियों की दौड़ में,
वोट का करता वह नोट से व्यापार है।
क्या वो देश को चला पायेगा,
इस तरह के लोभ में मतंगियों को,
कौन राह दिखायेगा ?
क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,
या फिर से पैदा होना पड़ेगा,
भगत, आजाद, शिवाजी और विर सुभाष को।
मानवों अधिकारों की जो,
राजनीति के बाजार में लगाते हैं बोलियां।
वेदना से जब जन आगे बढ़ें,
तब वे उन पर चलवाते हैं गोलियां,
या फिर करवाते हैं दंगे और
खेलते हैं खूनों की होलियां।
इस तरह के लोभ में मतंगियों को,
कौन राह दिखायेगा ?
क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,
या फिर से पैदा होना पड़ेगा,
भगत, आजाद, शिवाजी और विर सुभाष को।
बेरोजगारी, भ्रष्टाचारी और भूख से व्याकुल हो,
जब आ जाये जनपथ पर युवाओं की टोलियां,
तब लाचार युवा करते रहते संघर्ष सदा,
और देते रहते उनको सदा गालियां।
इस तरह के लोभ में मतंगियों को,
कौन राह दिखायेगा ?
क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,
या फिर से पैदा होना पड़ेगा,
भगत, आजाद, शिवाजी और विर सुभाष को।
सरकार गिराने और सरकार बचाने में माहिर,
ये नेता देश के तारणहार हैं,
जन की रोटी, कपड़ा और मकान की अमानतें भी हजम कर जाते स्वयं,
और चुनावी दौड़ में,
मतदाता को रिझाने, सुरा की बोतले भी थमाते स्वयं,
इस तरह के लोभ में मतंगियों को,
कौन राह दिखायेगा ?
क्या भारत अपनों में ही लुट जायेगा,
या फिर से पैदा होना पड़ेगा,
भगत, आजाद, शिवाजी और विर सुभाष को।
घोषणाओं और फाईलों के जरिये रोटी, कपड़ा और मकान
का समाधान हो जाता है।
और इसी तरह का भ्रष्टाचारी देश में,
सबसे बड़ा महान बन जाता है।
कल तक जिसे देते थे हम गालीयां,
मौत पर उसके आज चढ़ाते हैं फुलों की डालियां।
फिर चौक-चौराहे पर किसी बुत लगाकर उसकी,
पढ़ते हैं उसके कारनामों के कसीदे,
और फिर जय-जयकार लगाते हैं उसी महान भ्रष्टाचारी की
यही है भारत के हाथों की लकीर, यही है देश की तकदीर,
यही है देश की तकदीर।