वर्ष 2015 की ये दूसरी कविता युवाओं की समस्या और उनके संघर्ष को समर्पित.........अंचल ओझा
मैं देश का नव जवान हूँ।
आवारा हूं कातिल भी,
मजनू हूं,दीवाना भी।
सड़कों पर फिरता,
घरों को लूटता,
नोकरी की सनक में,
दर-दर फिरता,
मैं देश का वर्तमान हूं।
गरीबी की मार सहकर,
अपनों की दुत्कार सह कर,
ढूंढ रहा हूं अपना कोई,
रुपयों की इस खनक में,
हजारों की भीड़ में,
मैं देश का नव जवान हूं।
ढूंढ रहा हूं खुद को मैं,
अपने ही देश में,
सच्चाई क्या है मेरी,
मैं हूं कौन किससे पुछूं यह सवाल,
नक्सली, आतंकी, आवारा, बेरोजगार,
या कई और नाम है मेरे।
विश्व को हैरान कर रहा मैं,
राजनीति के बाजारों में पूछ परख मेरी,
चुनावी वादों में मेरे लिये है बहुत कुछ,
वोट की राजनीति से हट कर वजूद नहीं,
आओं चले अपना वजूद बनायें,
युवा सब एक संग हो,
देश का मान बढ़ाये,
चलो युवा देश की नई पहचान बनायें।
खुद में खुद को ढूंढे हम,
नव भारत का निर्माण करें,
ना फिरें दर-दर हम अब,
अपनी पहचान खुद बनें।