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क्यू हाथ खड़ी कर दी अब

10 मार्च 2015

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बिहार में आयी कोसी की बाढ़ के समय जब मैं वहां पर गया था, तब वहां की विनाशलिला और लोगों की समस्याओं को देखकर कई तरह के विचार मन-अंर्तमन में आये और उसी समय वहां से वापस आने के बाद मैंने यह कविता लिखी थी। यह कविता दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र स्टिंग इण्डिया में छप चुकी है। कोसी का बाढ़ और विनाश क्यू हाथ खड़ी कर दी अब - अंचल ओझा प्रकृति की संस्कृति और स्वतंत्रता को, मानव ने है दुषित किया। विलासिता और विकास का नाम देकर, प्रकृति के नियमों को दुत्कार दिया। प्रकृति के कहर को सहने का साहस नहीं, बस इतने में थक गये तुम, बस इतने में! कहां गयी वो विलासिता, कहां गई वो विकासलिला, होश आ गई अगर अभी। तो मत छेड़ों प्रकृति के नियमों को, इसी में है सबका जीवन, यहीं है प्रकृति का नियम। अब कहां गये वे वनों के तस्कर, कहां गये वो भू-माफिया। कहां गये पशु खालों के तस्कर, कहां गये वे विनाशलिला के रचियता। क्यू हाथ खड़ी कर दी अब तुमने, है यदि साहस तुम में, तो रोक लो, कोसी का कहर, तुम रोक लो बादल का गर्जना, तुम रोक लो सूर्य का निकलना, रोक लो तुम सुबह-शाम का होना। तभी मानव कहलायेगा ईश्वर, और तुम होगे परमेश्वर, और तुम होगे परमेश्वर। यदि ना कर सको तुम ऐसा, तो ना छेड़ों प्रकृति का नियम, तब ना होगा प्रकृति का कहर, ना होगी यह विनाशलिला।
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मैं देश का नव जवान हूँ।

9 मार्च 2015
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वर्ष 2015 की ये दूसरी कविता युवाओं की समस्या और उनके संघर्ष को समर्पित.........अंचल ओझा मैं देश का नव जवान हूँ। आवारा हूं कातिल भी, मजनू हूं,दीवाना भी। सड़कों पर फिरता, घरों को लूटता, नोकरी की सनक में, दर-दर फिरता, मैं देश का वर्तमान हूं। गरीबी की मार सहकर, अपनों की दुत्कार सह कर, ढूंढ रहा हूं अपन

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क्यू हाथ खड़ी कर दी अब

10 मार्च 2015
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बिहार में आयी कोसी की बाढ़ के समय जब मैं वहां पर गया था, तब वहां की विनाशलिला और लोगों की समस्याओं को देखकर कई तरह के विचार मन-अंर्तमन में आये और उसी समय वहां से वापस आने के बाद मैंने यह कविता लिखी थी। यह कविता दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र स्टिंग इण्डिया में छप चुकी है। कोसी का बाढ़ औ

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आओ खरीदो, चुन लो

10 मार्च 2015
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आओ खरीदो, चुन लो - अंचल ओझा रूपयों की इस भीड़ में, मेरी कीमत तुम सही आंको। हजारों की अब पुछ नहीं कहीं, मेरी कीमत लाखों-करोड़ों में आंको। बेटी पैदा कर किया है तुमने पाप, धन नहीं तो लिया सर क्यों यह शाप। रूपयों की इस भीड़ में, मेरी कीमत तुम सही आंको। हजारों की अब पुछ नहीं कहीं, मे

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क्या यही है देश की तकदीर

10 मार्च 2015
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क्या यही है देश की तकदीर - अंचल ओझा, अम्बिकापुर जहां रिश्वत, प्रलोभन, लोभ और वोट के बाजार में, पैदा होता देश का तारणहार है, जहां सत्ता की भूख से, कुर्सियों की दौड़ में, वोट का करता वह नोट से व्यापार है। क्या वो देश को चला पायेगा, इस तरह के लोभ में मतंगियों को, कौन राह दिखायेगा ? क्या भार

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संसदीय लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का व्यवहार और संवैधानिक संस्थाओं की पवित्रता

10 मार्च 2015
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रविवार, 13 जुलाई 2014 संसदीय लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का व्यवहार और संवैधानिक संस्थाओं की पवित्रता सबसे बड़ी बात जो अभी वर्तमान की ही है वह है संसदीय लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का व्यवहार। पिछले दिनों संसद में तृणमुल के सांसद तापस पाल ने जिस तरह से असंसदीय भाषा का प्रयोग किया क्या वास्तव में वह

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सच तो यहीं है, स्वीकार करना होगा।

10 मार्च 2015
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सच तो यहीं है, स्वीकार करना होगा। (२६ अगस्त २०१४)/ देश एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां चारों ओर धर्म, जाति व धार्मिक स्थलों व ईश्वर को लेकर विवाद हो रहा है। कहीं पर धार्मिक स्थल को लेकर दंगे हो जाते हैं तो कहीं लव जेहाद के नाम पर बवाल जारी है, वहीं दूसरी ओर सांई भक्तों पर मानों पहाड़ टूट पड़ा है। अब

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प्रेम तो हमारी संस्कृति का आधार है

10 मार्च 2015
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प्रेम तो हमारी संस्कृति का आधार है (१४ फ़रवरी २०१२)/ हमारी संस्कृति, हमारी धर्म हमें यह बतलाता है कि हमारी संस्कृति में प्यार शब्द सदियों व युगों से जुड़ा हुआ है। हम जब भी भगवान श्रीकृष्ण की बात करते हैं और उनके जीवन सार पर जब एक नज़र डाले तो भगवान के रासलिले और राधा के संग प्यार का भी एक हिस्सा हमे

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