बिहार में आयी कोसी की बाढ़ के समय जब मैं वहां पर गया था, तब वहां की विनाशलिला और लोगों की समस्याओं को देखकर कई तरह के विचार मन-अंर्तमन में आये और उसी समय वहां से वापस आने के बाद मैंने यह कविता लिखी थी।
यह कविता दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र स्टिंग इण्डिया में छप चुकी है।
कोसी का बाढ़ और विनाश
क्यू हाथ खड़ी कर दी अब
- अंचल ओझा
प्रकृति की संस्कृति और स्वतंत्रता को,
मानव ने है दुषित किया।
विलासिता और विकास का नाम देकर,
प्रकृति के नियमों को दुत्कार दिया।
प्रकृति के कहर को सहने का साहस नहीं,
बस इतने में थक गये तुम, बस इतने में!
कहां गयी वो विलासिता, कहां गई वो विकासलिला,
होश आ गई अगर अभी।
तो मत छेड़ों प्रकृति के नियमों को,
इसी में है सबका जीवन, यहीं है प्रकृति का नियम।
अब कहां गये वे वनों के तस्कर,
कहां गये वो भू-माफिया।
कहां गये पशु खालों के तस्कर,
कहां गये वे विनाशलिला के रचियता।
क्यू हाथ खड़ी कर दी अब तुमने,
है यदि साहस तुम में,
तो रोक लो, कोसी का कहर,
तुम रोक लो बादल का गर्जना,
तुम रोक लो सूर्य का निकलना,
रोक लो तुम सुबह-शाम का होना।
तभी मानव कहलायेगा ईश्वर,
और तुम होगे परमेश्वर,
और तुम होगे परमेश्वर।
यदि ना कर सको तुम ऐसा,
तो ना छेड़ों प्रकृति का नियम,
तब ना होगा प्रकृति का कहर,
ना होगी यह विनाशलिला।