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क्या हो अगर आग लग जाए!

24 अगस्त 2024

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क्या हो अगर, आग लग जाए

तेरी - मेरी साख़ जल जाए।

कौन रहे इस निर्जन वन में

जब राग - द्वेष की जड़ गल जाए।।



क्या हो अगर,आग लग जाए

दो राजा की आन जलाए।

सीमा पर प्रहरी बैठा हो

दुश्मन - देश पर घात लगाए।।



क्या हो अगर, आग लग जाए

परिवारों में कलह कराए।

भाई - भाई मौन रहें तो

कौन प्रेम का पाठ पढ़ाए।।



आग लगे, अगर कीर्तन की

प्रभु नाम,महिमा सिमरन की।

मोह - माया के पकवानों से

पापी पेट भरा ना जाए।

क्या हो अगर, आग लग जाए।।



© JAIDEV TOKSIA

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रचनाएँ
शब्दों की छांव
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आप सभी साहित्य प्रेमियों को सादर प्रणाम, मैं जयदेव टोकसिया हरियाणा मेरी जन्मस्थली है मुझे कविताएं लिखना अच्छा लगता है , मेरी कुछ कविताएं पत्र - पत्रिकाओं में छपती रहती है इस पुस्तक में मैं अपनी समस्त काव्य रचनाओं को एक साथ पिरौने कि पूरी कोशिश करूंगा। आप सभी से अपने लिए प्यार बनाए रखने कि प्राथना करूंगा। जय हिंद जय भारत
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मैं कहां से केशव लाऊं

29 अगस्त 2022
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इन टूटे दिल के शीशों में अपने ही पराए लगते हैं। उन दीवानों की टोली में हम अनजाने से लगते हैं।। अब तेरी ही बस यादों में हम गुनगुनाने लगते हैं। अब अपने ही परिवारों में&nbsp

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कवि कौन है?

2 सितम्बर 2022
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हर बात को जाना हो जिसने हर कलम चलानी आती हो। हर जगह शब्दों के व्यहू में हर बात मनानी आती हो।। हर जगह देहाती जीवन की हर नजर उठानी आती हो। हर हार के हार

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बचपना

24 अगस्त 2024
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एक फूल मेरे आँगन खिलाकमल गुलाब से भी बड़ा ।सूरजमुखी सी उसकी कलीमदिराओं के बीच पड़ी ।।जननी सोच व्याकुल भयीहो जाए न मदिरा आदी ।धूर्त हो लौटते हैं जोनिकलते हैं पहन के खादी ।।किचड़ में कमल हो जैसेदुर्गंध में

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क्या हो अगर आग लग जाए!

24 अगस्त 2024
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क्या हो अगर, आग लग जाएतेरी - मेरी साख़ जल जाए।कौन रहे इस निर्जन वन मेंजब राग - द्वेष की जड़ गल जाए।।क्या हो अगर,आग लग जाएदो राजा की आन जलाए।सीमा पर प्रहरी बैठा होदुश्मन - देश पर घात लगाए।।क्या हो अगर,

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24 अगस्त 2024
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24 अगस्त 2024
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दिन 365 बीत गएकुछ हार गए कुछ जीत गए।लिपट- लिपटकर मिलने वालेनमस्ते करना सीख गए।दिन 365 बीत गए।कुछ लौट आए, कुछ लौट गएकुछ सह गए कुछ चीख गए।वक्त- वक्त कर मरने वालेअपनों संग रहना सीख गए।दिन 365 बीत गए।कुछ

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कलयुग

24 अगस्त 2024
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इस ज़माने कोपैसों का तोहफा चाहिए।बेचा हो कचरा अगरमुनाफा फिर भी चाहिए।।ख़ाक से भी बहतरअक्सर हो जातें हैं वोजिन्हें मूर्दो से भी कर्जवापिस चाहिए।इस ज़माने कोपैसों का तोहफा चाहिए।।© जयदेव टोकसियासिरसा (ह

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आसमान में देख रे प्यारे बादल की बारात चली है।सहलाती- सी भीगी- भागी सावन की सौगात चली है।।यह बारात अब जहाँ रुकेगी

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