एक फूल मेरे आँगन खिला
कमल गुलाब से भी बड़ा ।
सूरजमुखी सी उसकी कली
मदिराओं के बीच पड़ी ।।
जननी सोच व्याकुल भयी
हो जाए न मदिरा आदी ।
धूर्त हो लौटते हैं जो
निकलते हैं पहन के खादी ।।
किचड़ में कमल हो जैसे
दुर्गंध में सुगंध उपजी हो ।
भीषण अग्नि ताप में जैसे
ठण्डी सी..लहर चली हो ।।
छोटी सी हँसी को देखकर
पत्थर दिल पिघल जाता है।
लहू पीने वाला भी देखो
पुत्र प्रणय में बँध जाता है ।।
छोटी सी वाणी के आगे
बैरी बैर भुला जाता है ।
मनमोहक गिरधर के आगे
ज्ञानी ज्ञान भूला जाता है ।। ...
© Jaidev Toksia