इन टूटे दिल के शीशों में
अपने ही पराए लगते हैं।
उन दीवानों की टोली में
हम अनजाने से लगते हैं।।
अब तेरी ही बस यादों में
हम गुनगुनाने लगते हैं।
अब अपने ही परिवारों में
हम मेहमानों से लगते हैं।।
हमसे दूर रहकर भी
वह ख़ज़ाने से लगते हैं।
पास जाने की कोशिश में
हम परवाने से लगते हैं।।
हर जख्म बिना घावों के
पर हर दर्द दिखाई देता है।
हर दिल बिना दिलबर के
कौन! दीवाना दिखाई देता है।। ...