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लावण्य की मृग-मरीचिका

1 जुलाई 2016

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featured imageअभी नवयुवाओं की सभ्यता आतुर है, अत्यधिक प्रयत्नशील है, अति खर्चशील है, चेहरे को सौन्दर्य-सम्पूर्ण बनाकर निखारने के लिए, मुखड़े को हर पल चाँद-सा लावण्यपूर्ण दिखाने के लिए। न केवल मुखारविन्द को, बल्कि बालों को भी संवारने के लिए, अलक-श्रृंगार के प्रति, केश-सौन्दर्य-विन्यास के प्रति भी वे ऐसे ही सजग दिखाई देते हैं। किसी भी आधुनिक सैलून या पार्लर में जाकर आप इस तथ्य का अनुभव कर सकते हैं। वहाँ फेशियल और फेस-मसाज के महँगे से महँगे ब्रांड, शहनाज के, गार्नियर के, लोरियल के हर पल आजमाए जा रहे हैं, घंटों खपाए जा रहे हैं। नये चमक-दमक की आस में, तीक्ष्ण भ्रू-विलास में पगी इस पीढ़ी को आखिर क्या हासिल हो रहा है? कैसा भी फेशियल या कितना भी उम्दा फेस-मसाज हो, एक दिन पर्यन्त ही उसकी दमक रहेगी। दूसरे दिन से फिर वही मूलता। ब्यूटी-पार्लर में सैकड़ों खर्च करके चेहरे की पालिश कराने के बाद भी कमनीयता नितान्त अस्थायी ही होती है। जैसे पीतल के बर्तन को खटाई से रगड़ डालो, उसमें थोड़ी देर के लिए चमक आ जाएगी, लेकिन फिर वही की वही मलिनता। नये ओज की सचेष्ट खोज में लीन इस नई युवा पीढ़ी को यह रस-गंध-सुगंध मुबारक।

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राजकिशोर सिन्हा

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माँ भारती की संतानों से विनम्र आग्रह है - पश्चिम की अदाओं में मत फंसो, लौटा दो भारत के गौरवशाली अतीत को।

1 जुलाई 2016

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घास का मैदान

30 जून 2016
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लावण्य की मृग-मरीचिका

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अभी नवयुवाओं की सभ्यता आतुर है, अत्यधिक प्रयत्नशील है, अति खर्चशील है, चेहरे को सौन्दर्य-सम्पूर्ण बनाकर निखारने के लिए, मुखड़े को हर पल चाँद-सा लावण्यपूर्ण दिखाने के लिए। न केवल मुखारविन्द को, बल्कि बालों को भी संवारने के लिए, अलक-श्रृंगार के प्रति, केश-सौन्दर्य-विन्यास के प्रति भी वे ऐसे ही सजग दिखा

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