सुमेर सिंह एक साधारण परिवार का का लड़का था और सुमी मॉर्डन ओर रहीस परिवार की लड़की थी दोनों कॉलेज के टाइम से एक दूसरे को जानते थे फिर अलग अलग जगह नौकरी करने लगे ।
लेकिन एक दूसरे से दूर होकर एक दूसरे की कमी को महसूस करते रहे दोनों ने एक रेस्टोरेंट में मिलना तय किया और अपने अपने प्यार का इजहार किया ।
बड़ी मुश्किलों के बाद दोनों ने अपने अपने परिवार को शादी के लिए राजी किया। सगाई वाले दिन कुछ ऐसा हुआ कि दूल्हा बेचारा ना कुछ कह पा रहा था ना कुछ कर पा रहा था ।
वैसे अरेंज मैरिज में दूल्हे की तरह से कई तरह के फरमान सुना दीए जाते है कि ये नहीं करना ,ये नहीं पहना ,हमारे यहां ऐसा नहीं चलता है । वही लव मैरिज में कोई पूछता भी नहीं है । सुमेर के मम्मी पापा तो खुले विचारों के थे परन्तु बाकी परिवार गांव से था और वह अपने परंपरा तथा उसके नियमों का पूरी कड़ाई से पालन करते थे
सुमी जैसे ही सगाई के लिए तैयार होकर आई उसको देखते ही, सुमेर ओर उसकी मम्मी ने एक दूसरे को देखा और समझ गए कि आज हंगामा होने वाला है।
सुमी ने एक खुले गले की ड्रेस पहनी थी जो पीछे से भी ज्यादातर ओपन थी सुमेर के दादाजी, ऐसे पहनावे को देखकर भड़क गए और सुमेर के पापा को आदेश दे दिया कि अभी के अभी यह बंद करो और सब वापस चलो ।
यह सुनकर सुमी , उसके परिवार वालों के साथ साथ बाकी लोग भी घबरा गए।
किसी तरह दादा जी को शांत किया गया और सुमी के कपड़े बदलवाए तब कहीं जाकर दादा जी ने सगाई होने दी।
फिर दादाजी ने सबको संबोधित करते हुए कहा कि
मैं आधुनिक पहनावे के खिलाफ नहीं हूं परंतु वह भी ऐसा होना चाहिए की देखने वाले को और पहनने वाले हैं दोनों को ही अच्छा लगे। पहनावा चरित्र को नहीं बताता। मगर देखने वाले के मन में आपके प्रति विचार जरूर बदलता है। समय और परिवेश को देखते हुए पहनावे को चुनना चाहिए।
ये वाकेया जब भी सुमेर को याद आता है तो वो सुमी की खूब टांग खींचता है ।