10 फरवरी 2017
कवि: शिवदत्त श्रोत्रियछोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥