कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
छोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना
पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना
जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर
माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥
10 फरवरी 2017
छोड़ा घर सोच कर, किस्मत आजमाना
पर क्यों ना लौट मैं, कोई करके बहाना
जन्नत ढूंढता था, जन्नत से दूर होकर
माँ-बाप के पैर छुए हुआ एक जमाना ॥
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हिन्दी साहित्य के प्रति रुझान, अपने विचारो की अभिव्यक्ति अपने ब्लॉग के माध्यम से आप सब को समर्पित करता हूँ|
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Dचाँद लाइने लेकिन विचारणीय , बहुत खूब शिव दत्त जी
11 फरवरी 2017