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maheshjaiswal04

महेश

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maheshjaiswal04

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पुस्तक के भाग

1

तेरी नजरो का फ़ेरा !!

14 अप्रैल 2015
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वो जो तेरी नजरों का फ़ेरा था कही पर खो गया लगता है, हम पर नही बरसता अब, किसी और को हो गया लगता है। वो जो ख्यालो की रातें थी, हकीकत का सवेरा था, वो जो हमारे-तुम्हारे बीच में कुछ भी न तेरा-मेरा था। वो जो तेरी पलको पर सिर्फ़ मेरे सपनो का डेरा था, शायद उन सपनो का बीज कोई और बो गया लगता है॥ वो

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तूने भी क्या खूब कहा था !

2 मई 2015
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तूने भी क्या खूब कहा था, फ़िर मिलेंगे चलते-चलते, ताउम्र सफ़र को जारी रखा हमने अंगारो पर जलते- जलते ! एक तिनका मझदार में, जो फ़सा है अब भी प्यार में, उसने भी किनारे आना है, शाम का सूरज ढलते-ढलते ! नींद है ओझल आँखों से और सपनो की बेचैनी शोर मचाए, तेरी रात को हो चंदा हासिल, चाहे अपने सितारे रहे मचलते !

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