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तेरी नजरो का फ़ेरा !!

14 अप्रैल 2015

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वो जो तेरी नजरों का फ़ेरा था कही पर खो गया लगता है, हम पर नही बरसता अब, किसी और को हो गया लगता है। वो जो ख्यालो की रातें थी, हकीकत का सवेरा था, वो जो हमारे-तुम्हारे बीच में कुछ भी न तेरा-मेरा था। वो जो तेरी पलको पर सिर्फ़ मेरे सपनो का डेरा था, शायद उन सपनो का बीज कोई और बो गया लगता है॥ वो जो तेरी नजरों का फ़ेरा था कही पर खो गया लगता है, हम पर नही बरसता अब, किसी और को हो गया लगता है। वो जो हमने कसमे खायी, जिन वादो पर हम इतराते थे, वो जो मिलने की चाहत में हम बिछुड़ने से घबड़ाते थे। वो जो हम एक दूजे की खातिर औरो से लड़ जाते थे, शायद ये चाहत का आलम चादर ताने सो गया लगता है॥ वो जो तेरी नजरों का फ़ेरा था कही पर खो गया लगता है, हम पर नही बरसता अब, किसी और को हो गया लगता है। वो जो तुझे देखे बिन एक पल भी ना बीत पात था, वो जो मेरा मन तेरे धुन के वो सारे गीत गाता था। वो जो बस तुझसे हारकर मैं सबकुछ जीत जाता था, शायद वो सब सपना था, टूट अब जो गया लगता है॥ वो जो तेरी नजरों का फ़ेरा था कही पर खो गया लगता है, हम पर नही बरसता अब, किसी और को हो गया लगता है। ​ ​ ​महेश जैसवाल द्वारा लिखित !!
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तेरी नजरो का फ़ेरा !!

14 अप्रैल 2015
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वो जो तेरी नजरों का फ़ेरा था कही पर खो गया लगता है, हम पर नही बरसता अब, किसी और को हो गया लगता है। वो जो ख्यालो की रातें थी, हकीकत का सवेरा था, वो जो हमारे-तुम्हारे बीच में कुछ भी न तेरा-मेरा था। वो जो तेरी पलको पर सिर्फ़ मेरे सपनो का डेरा था, शायद उन सपनो का बीज कोई और बो गया लगता है॥ वो

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तूने भी क्या खूब कहा था !

2 मई 2015
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तूने भी क्या खूब कहा था, फ़िर मिलेंगे चलते-चलते, ताउम्र सफ़र को जारी रखा हमने अंगारो पर जलते- जलते ! एक तिनका मझदार में, जो फ़सा है अब भी प्यार में, उसने भी किनारे आना है, शाम का सूरज ढलते-ढलते ! नींद है ओझल आँखों से और सपनो की बेचैनी शोर मचाए, तेरी रात को हो चंदा हासिल, चाहे अपने सितारे रहे मचलते !

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