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मनुष्य का असली बल

31 जनवरी 2015

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featured imageबहुत पुरानी बात है जापान के दो राज्यों में युद्ध छिड गया था ! छोटा जो राज्य था वो बड़ा भयभीत था हार जाना उसका निश्चित था !उसके पास सैनिको की संख्या कम थी छोटे राज्य के सेनापतियों ने युद्ध करने से इनकार कर दिया था राजा के खूब समझाने पर भी सेनापति राजी नहीं थे ,परेशान होकर राजा ने एक फकीर से मदद मांगी और गया उनके पास और बोला की आप मेरी सेना के सेनापति बन जाओ,ये बात सेनापतियों को समझ में नहीं आई !सोचने लगे की सेनापति जब इनकार करते हो तो एक फकीर को जिसे युद्ध का कोई अनुभव नहीं, जो कभी युद्ध पर गया नही, जिसने कभी कोई युद्ध नहीं किया -- यह बिलकुल अव्यभारिक आदमी को आगे लाने का क्या प्रयोजन हो सकता है ?. लेकिन वह फकीर राज़ी हो गया !जहाँ बहुत से लोग राज़ी नहीं होते वहाँ बहुत से अव्यभारिक लोग राजी हो जाते ! जहाँ समझदार पीछे हट जाते है वहाँ जिन्हें कोई अनुभव नहीं है आगे खड़े हो जाते है !वह फकीर राज़ी हो गया ! सेना को युद्ध में फकीर के साथ जाने में घबराहट हो रही थी किन्तु फकीर में जोश इतना था की उन्हें जाना पड़ा ! रास्ते में एक मंदिर था फकीर ने बोला जाने से पहले हमे भगवान से प्रार्थना कर लेनी चाहिए ! सब मंदिर के सामने खड़े हो गए, इतने में फकीर ने खीजे में से एक सिक्का निकाला और भगवान की तरफ देख कर बोला की मै ये सिक्का उछाल रहा हुँ ! अगर यह सीधा गिरा हम समझ लेंगे की जीत हमारी होनी है और हम बढ़ जाएंगे आगे, और अगर यह उलटा गिरा तो हम मान लेंगे की हम हार गए, हम वापस लौट जायेंगे और राजा से कह देंगे व्यर्थ मरने की व्यवस्था मत करो हमारी हार निश्चित है, भगवान की भी यही मर्ज़ी है . सैनिक ने गौर से देखा उसने सिक्का उछाला ! चमकती धुप में सिक्का चमका और नीचे गिरा ! वह सीधा गिरा था ! उसने सैनिको से कहा अब फ़िक्र छोड दो अब ख़याल ही छोड दो की तुम हार सकते ही ! सबने युद्ध लड़ा और जीते भी सही !आते वक्त उसी मंदिर में सभी सैनिक भगवान को धन्यवाद देने लगे ! फकीर ने कहा की इससे पहले की तुम भगवान को धन्यवाद दो मेरे पास जो सिक्का है उसे गौर से देखलो ! उसने सिक्का निकल कर बताया, वह सिक्का दोनों तरफ से सीधा था,उसमे कोई उल्टा हिस्सा था ही नहीं ! वह सिक्का बनाबटी था, वह दोनों तरफ सीधा था ,वह उल्टा गिर ही नहीं सकता था ! उसने कहा ,भगवा को धन्यवाद मत दो !तुम आशा से भर गए थे जीत की,इसलिए जीत गए !तुम हार भी सकते थे,क्यूंकि तुम निराश थे और हारने की कामना से भरे थे ! तुम जानते थे की हारना ही है ! जीवन में सारे कामो की सफलताए इसी बात पर निर्भर करती है की हम उनकी जीत की आशा से भरे हुए है या हार के ख़याल से डरे हुए है ! और बहुत आशा से भरे लोग थोड़ी से सामर्थ्य से इतना कर पाते है जितना की बहुत सामर्थ्य के रहते हुए भी निराशा से भरे हुए लोग नहीं कर पाते ! सामर्थ्य मूल्यवान नहीं है, सामर्थ्य असली संपत्ति नही है ! असली संपत्ति तो आशा है --और यह ख़याल है की कोई काम है जो होना चाहिए जो होगा और जिसे करने मै हम कुछ भी नहीं छोड रखेंगे..
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युवा मन क़ी व्यथा

28 जनवरी 2015
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आज फिर पापा की डाँट खाकर घर से निकला हूँ यार ये बड़े लोग भी न हम युवाओ की भावनाओ को कब समझेगे वही रोज़ का राग बेटा ज़िंदगी मई क्या करोगे आगे क्या करने का विचार है. क्या ज़िंदगी ऐसे ही गुज़रोगे बगैरह बगैरह इस संसार मे हर कोई हम पर अपनी आकांक्षोंका भार डालने पर लगा पड़ा है कोई ये नहीं सोचता की हम युवा क्या

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अमरीकी जिन्हें डिजीटल कामयाबी तबाह कर गई

30 जनवरी 2015
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सुबह होने को है. थोड़ा कोहरा, थोड़ा अंधेरा दोनों मिलकर सैन फ्रांसिस्को शहर को एक मटमैला सा रंग दे रहे हैं. ज़्यादातर लोग अभी अपनी नर्म-गर्म बिस्तरों में ही दुबके हुए हैं. लेकिन बहुत सारे ऐसे हैं जो जल्दी-जल्दी अपना पुराना कंबल, बदबूदार ओवरकोट, पानी का कनस्तर, एक-दो फटी किताबें और कुछ ऐसे सामान जिन्

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मनुष्य का असली बल

31 जनवरी 2015
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बहुत पुरानी बात है जापान के दो राज्यों में युद्ध छिड गया था ! छोटा जो राज्य था वो बड़ा भयभीत था हार जाना उसका निश्चित था !उसके पास सैनिको की संख्या कम थी छोटे राज्य के सेनापतियों ने युद्ध करने से इनकार कर दिया था राजा के खूब समझाने पर भी सेनापति राजी नहीं थे ,परेशान होकर राजा ने एक फकीर से म

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वोट महोत्सव

7 फरवरी 2015
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अंततः दिल्ली चुनाव का मतदान संपन्न हो गया हमारे देश मे चुनाव आज कल एक राष्ट्रीय पर्व बन गया है जिसके आने पर सारा देश उल्लासित सा हो जाता है . क्या समाचार पत्र,टी.वी.चैनल राजनीति के विद्वान गण आदि सभी एक दम से अवतरित हो जाते है . ऐसा लगता है की जैसे सभी को कोई काम नहीं केवल देश की चिंता है पर इस र

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