'म ' इस शब्द का
कितना गहरा रिश्ता है ?
हर इंसान से
खासतौर पर
हर औरत से।
'म' से 'मैं'
''म' से 'मेरी /मेरा '
'म' से 'माँ'
'म' से 'मायका '
एक कहावत है न ,
माँ से मायका। .
पता नहीं कितना सोचकर
कितने अहसासों के बदले
कितने आहत मनों ने
इसको गढ़ा होगा।
कभी गुजरते हुए सड़क पर
जाती हुई बसों पर
देखकर 'मायके के शहर /गाँव का नाम
आँखों में चमक आ जाती थी।
मन करता था
दौड़कर बैठ जाऊं
औ'
पहुँच जाऊं माँ के पास।
जब से माँ गईं
अब भी वह शहर वही है ,
,वह घर भी है ,
और घर में रहने वाले सभी लोग.
,लेकिन
सिर्फ माँ तुम नहीं हो।
रोका नहीं किसी ने
बाँधा भी नहीं किसी ने
बुलाते हैं उसी तरह
फिर भी
पता नहीं क्यों ?
अब माँ वो अपनापन
क्यों दिल को छूता नहीं है?
अब भी बसें वहां जाती हैं ,
मेरे सामने से भी गुजरती हैं ,
लेकिन
अब
अब नहीं रही वो ललक
नहीं आती है
मेरी आँखों में वो चमक
क्यों माँ ?
क्या जो कहा गया था वो
वो सच ही है न।
क्योंकि वो अब
आगे वाली पीढ़ी के लिए
मायका बन चुका है।
मेरा मायका तो माँ
तुम्हारे साथ ही चला गया।
मैं इस शब्द के साथ
बहुत अकेली रह गयी।