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मेरसरकर

रेखा श्रीवास्तव

3 अध्याय
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शब्दनगरी एक सेतु ! 

mersarkar

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पुस्तक के भाग

1

अफसोस

26 जुलाई 2016
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वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से , हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं । दौड़ नहीं पाये संग संग उसके तो पीछे रह गये , थाम कर बीते दिन पुराने कलैण्डर से लिए बैठे हैं । पाँव थक गये थे दौड़ना सिखाते सिखाते उनको , आयेंगे वो पलट कर साथ ले जाने आस लिए बैठे हैं। हमारी तो ये धरोहर है जीवन की

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माँ से मायका !

27 जुलाई 2016
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'म ' इस शब्द का कितना गहरा रिश्ता है ?हर इंसान से खासतौर पर हर औरत से। 'म' से 'मैं'''म' से 'मेरी /मेरा ''म' से 'माँ''म' से 'मायका 'एक कहावत है न ,माँ से मायका। .पता नहीं कितना सोचकरकितने अहसासों के बदलेकितने आहत मनों नेइसको गढ़ा होगा।कभी गुजरते हुए  सड़क परजाती हुई बसों परदेखकर 'मायके के शहर /गाँव का

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रिश्तों की परिभाषा !

8 अगस्त 2016
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रिश्ते बनते हैं बिगड़ते हैं और और फिर ख़त्म हो जाते हैं। कहते हैं खून के रिश्ते ऊपर वाला बनाता है वे अमिट होते हैं खून के रंग से गहरे और रगों में बहते हैं। वक़्त ने रिश्तों की परिभाषा बदल दी ,लक्ष्मी ने खून को पानी कर दिया। स्वार्थ ने अपने को पराया कर दिया। बस एक रिश्ता आज भी जिन्दा है उसी तरह वो  रिश

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