लघुकथा ! बहुत दिनों से सोच रही थी कि कभी किसी वृद्धाश्रम में जाऊं और वहाँ रहने वाले बुजुर्गों से मिलूँ - कुछ पल उनके साथ बैठ कर शायद कुछ पा सकूं और कुछ दे सकूं। पता चला कि घर से कुछ ही किलोमीटर की दूर पर एक वृद्धाश्रम है। उस दिन निकल ही ली। वृद्धाश्रम के परिसर में गुट बनाकर बैठे बुजुर्ग हँस रहे थे , बातें कर रहे थे, पुरुष औरमहिलायें दोनों ही थे। लग रहा था कि जैसे एक परिवार जैसा हो। वही देखा दूर बेंच पर एक</s