- रिश्तो का महत्व सदीओ से चला आ रहा है अपितु यूँ कह सकते सकते हैं कि रिश्तो की नीव पर ही सामाजिक दुनिआ आधारित है। रिश्ता माँ बाप ,भाई बहन ,पति पत्नी ,दोस्त अथवा पडोसी का ही क्यों न हो प्रतेक रिश्ते का अलग और अपना महत्व है। वर्तमान परिवेश एवं भाग दौड़ की जिंदगी में रिश्ते निर्वहन के तरीको में कुछ परिवर्तन आने लगे है उसके अनेको अनेक कारण हो सकते है कुछ अच्छे कुछ विपरीत ,समाज में रहन सहन के तौर तरीके बदल रहे है लोगो में प्रतिस्पर्धा बड़ रही है। नै पीढ़ी में धन के प्रति स्पर्धा ,सामाजिक स्तर को ऊँचा दिखाने की स्पर्धा कुछ कारणों से यह उचित हो सकती है परन्तु आधुनिकता की चमक धमक एवं प्रदर्शन प्रतिस्पर्धा इसके लिए घातक होगी प्रदर्शन की में किसी प्रकार भी समाज एवं मनुष्य के लिए उचित नही है उद्देश्य पूर्ति के लिए मनुष्य कोई भी नैतिक ,अनैतिक उपाय ,विचार अथवा ब्यवहार अपनाने में संकोच नहीं करता परिणाम चाहे जो भी हों फलस्वरूप व्यक्ति मानसिक तनाव से जूझने लगता है एवं संंबंधो के प्रति असंवेदनशील भी हो सकता है.आधुनिक पनपता बाज़ारवाद ,पूंजीवाद भी इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहा है ,जिसका प्रभाव हमारे सामाजिक एवं पारिवारिक संम्बन्धों पर स्पष्ट दिखाई पड़ने लगा है। बाज़ारवाद एवं पूंजीवाद के दलदल में फसते जा रहे है जिसके कारण हमें अधिक धन अर्जन हेतु ऐसे निर्णय लेने पर विवश होना पड़ता है जिसका परिणाम संंबंधो पर विपरीत पड़ता। शेष गतांक में >>>>>>>