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मशरुफ़ रहने का अंदाज़ >>>>>>>>>>> गतान्क से आगे

25 अक्टूबर 2015

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featured imageफलस्वरूप क्षणे क्षणे रिश्तो में दुरिआ बन जाती हैं. समझा जाता है की बड़े  परिवारो में रिश्तओ के बंधन मजबूत होते है लेकिन ऐसा अब कम ही देखने को मिलता है सन्युक्त परिवारो में भी रिश्तो नातो का महत्व कम होता जा रहा है वहा भी द्वेष स्वार्थ स्पर्धा सम्बन्धो की डोर को ढीला करने अथवा तोड़ने की मुख्य भूमिका निर्वहन कर रहा है वहा भी आधुनिकता की चमक डंक ईर्ष्या अहम सम्पति विवाद इत्यादि का संबंधो पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। बाल मन रिश्तो के प्रति काफी संवेदनशील होता है प्रतेक रिश्ते के प्रति बाल मन में आदर सम्मान एवं स्नेह होता है लेकिन जैसे जैसे बड़े होते है स्पर्धाए शुरू होने लगती है पढ़ाई का बोझ हावी होने लगता है और यह स्वभाविक भी है एवं मानव विकास के लिए अति आवश्यक एवं मत्वपूर्ण भी है यह दूसरी वस्तुए जैसे आधुनिक तकनीक जो की समय के साथ चलने के लिए आवश्यक है लेकिनउसका अत्यधिक उपयोग एवं दुरूपयोग भी सामजिक रिश्तो पर विपरीत प्रभाव दाल।  जीवन में आगे बढ़ने एवं निर्धाित जीवन मूल्यों लक्ष्यों को प्राप्त हेतु प्रतेक कार्य आवश्यक ,महत्वपूर्ण एवं उपयोगी एवं उचित है लेकिन संबंधो में गरिमा एवं संतुलन बनाये लिए हमे कुछ सीमाये निर्धारित करनी होंगी संबंधो को बनाये रखने के लिए उन्हें उचित महत्व एवं सम्मान देना होगा उसके लिए भाग दौड़ एवं निजी जीवन से थोड़ा समय निकाल कर उन्हें सहेजना होगा। संवेदनशील सम्बन्ध जो एक रेशम की डोर से नाजुक होते है उन्हें बांधे  रखने के लिए धैर्य ,त्याग स्नेह , संवेदनशीलता से पोषित एवं उनमे सम्मान की ऊर्जा प्रवाहित करके ही बनाये रखा जा सकता है और यही महारा प्रयास एवं उदेश्य होना चाहिये। 
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मशरूफ रहने का अंदाज़ , तुम्हे तन्हा न कर दे ग़ालिब , रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं। [ग़ालिब]

13 अक्टूबर 2015
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रिश्तो का महत्व सदीओ से चला आ रहा है अपितु यूँ कह  सकते सकते हैं कि रिश्तो की नीव पर ही सामाजिक दुनिआ आधारित है। रिश्ता माँ बाप ,भाई बहन ,पति पत्नी ,दोस्त अथवा पडोसी का ही क्यों न हो प्रतेक रिश्ते का अलग और अपना महत्व है। वर्तमान परिवेश एवं भाग दौड़ की जिंदगी में रिश्ते निर्वहन के तरीको में कुछ परिवर

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मशरूफ रहने का अंदाज़ , तुम्हे तन्हा न कर दे ग़ालिब , रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं। [ग़ालिब]

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रिश्तो का महत्व सदीओ से चला आ रहा है अपितु यूँ कह  सकते सकते हैं कि रिश्तो की नीव पर ही सामाजिक दुनिआ आधारित है। रिश्ता माँ बाप ,भाई बहन ,पति पत्नी ,दोस्त अथवा पडोसी का ही क्यों न हो प्रतेक रिश्ते का अलग और अपना महत्व है। वर्तमान परिवेश एवं भाग दौड़ की जिंदगी में रिश्ते निर्वहन के तरीको में कुछ परिवर

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मशरूफ रहने का अंदाज़ , तुम्हे तन्हा न कर दे ग़ालिब , रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं। [ग़ालिब]

13 अक्टूबर 2015
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रिश्तो का महत्व सदीओ से चला आ रहा है अपितु यूँ कह  सकते सकते हैं कि रिश्तो की नीव पर ही सामाजिक दुनिआ आधारित है। रिश्ता माँ बाप ,भाई बहन ,पति पत्नी ,दोस्त अथवा पडोसी का ही क्यों न हो प्रतेक रिश्ते का अलग और अपना महत्व है। वर्तमान परिवेश एवं भाग दौड़ की जिंदगी में रिश्ते निर्वहन के तरीको में कुछ परिवर

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मशरुफ़ रहने का अंदाज़ >>>>.......>>>>> गतांक से आगे >>>>>>>>>>>>>>

22 अक्टूबर 2015
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फलस्वरूप परिवार बिखरने लगते हैं। आधुनिकता की चकाचोंध में खो जाने के लिए परिवारो को छोड़ कर परिवार के युवा सदस्य पलायन कर रहे है जिससे छोटे परिवार बाहर जा कर स्थापित होते है एवं पुनः स्थापित होने के लिए संघर्षरत हो जाते है। अपने आपको स्थापित करने के लिए पीछे छूटे रिश्तो पर समय की धुंध चने लगती है। उसे

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मशरुफ़ रहने का अंदाज़ >>>>>>>>>>> गतान्क से आगे

25 अक्टूबर 2015
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फलस्वरूप क्षणे क्षणे रिश्तो में दुरिआ बन जाती हैं. समझा जाता है की बड़े  परिवारो में रिश्तओ के बंधन मजबूत होते है लेकिन ऐसा अब कम ही देखने को मिलता है सन्युक्त परिवारो में भी रिश्तो नातो का महत्व कम होता जा रहा है वहा भी द्वेष स्वार्थ स्पर्धा सम्बन्धो की डोर को ढीला करने अथवा तोड़ने की मुख्य भूमिका नि

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