मेरा गांव शहर से क्या कम हैं।
शुद्ध हवा और वातावरण है
रेत के टीलों पर छा जाती हैं
घनघोर घटाएं
नज़ारे यह हिमाचल से क्या कम हैं।
चलती है जब बरखा सावन की,
धरती -अम्बर का मिलना
स्वर्ग से क्या कम है।
बादल ओढ़ा के जाता चुनरी हरियाली
की बहना को,
रिश्ता इनका रक्षाबंधन से क्या कम हैं।
संस्कार की गाथा सीखे बच्चे
हर बाला देवी जैसी
मेरे गांव में अब नहीं ठहरता ग़म हैं।
बच्चे नाव चलाते पोखर में
मौजो की रवानी है कुछ शान्त सी
मगर यह सागर से क्या कम हैं।
हैं खुश सभी अपने छोटे से जहां में
मेरा गांव शहर से क्या कम हैं।
आशुर्चित