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मेरी परछाई

13 नवम्बर 2019

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article-imageमेरी परछाई हरदम साथ चली।

हर गांव शहर गली गली ।

जो थे मेरे कर्म या थी कोई डगर

मिलकर गले पल-पल साथ चलीं।

मैं झुका संग झुकी

मैं गिरा वह भी गिरकर

हर इरादे में साथ चली।

मेरी परछाई..............

तन्हा सफर हो या रोशन रातें

संग दूर तलक चली।

सत्य की राह हो या हो मिथ्य पथ।

बेबस बे जुबां चली।

मेरी परछाई ..…............

कभी अगाङी कभी पिछाङी

अगल बगल , छू कर कदम

रौशन दिनों में गहरी सी

रातों में महफूज ही चली।

मेरी परछाई....…....

कभी पैरों तले कभी शिखर तक

वफ़ा के हर पैमाने पे मायूस सी चली।

आसान कहां थी राह मंजिल की

फिर भी बढ़ा के हौंसला मेरा चली।

मेरी परछाई.....….........

ओझल हुआ सूरज तो क्या।

इक दिये के सहारे झिलमिलाती चली।

चहुं ओर थे तीव्र प्रकाश पुंज

सहमी सी बिखरती ही चली।

मेरी परछाई.................

है मुझसे यूं कुछ गहरा नाता

सुख-दुःख की दहलीज़ों तक साथ चली।

बन गवाह मेरे अच्छे बुरे कर्मों की

छू कर कदम निरंतर, अविरल धारा सी चली।

मेरी परछाई..................

मैंने बदले लिबास

बेतरबीन रंगों से सराबोर

बन के जीवन संगिनी

सदा सादगी युक्त स्याह सी चली।

मेरी परछाई......

मेरी परछाई हैं या में परछाई सा हूं।

बिना ज्योति के जब मैं चला , होकर विलुप्त चली।

जब रही शमां की छोटी सी उम्मीद।

मेरी परछाई! अटल,अनंत ,अमिट चली।

हर गांव शहर गली गली।


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रचनाएँ
rkjogachand
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सामाजिक सकारात्मक विचार एवं समसामयिक विषयों पर लेखन।
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मेरा गांव

22 अक्टूबर 2019
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