ना इधर सोचना, ना उधर सोचना
मेरे बारे में तुम हाँ मगर सोचना
सोचना उठ के रातों को तारे लिए
दिन जो गुजरे अगर दोपहर सोचना
बेवजह, बेअसर, बेखबर मत रहो
शेर मुमकिन है तुम इक बहर सोचना
इससे अच्छा कि लफ्ज़ और तीखे कहो
मेरे बारे में मीठा जहर सोचना
एक तबियत बने थोड़ी नीयत सजे
रोशनी की बढ़े वो लहर सोचना
सोचना सोच खुद से ही जो गर मिले
होगा बातों में क्या वो असर सोचना
बढ़ चले हैं, बढ़ें हैं, बढ़ेंगे मगर
जब है रहना नहीं क्यूँ किधर सोचना
सोच कर के ही मिलता तो लेते मज़ा
पर जो कुछ न मिले बेफिकर सोचना
ख्वाब बुनते रहो, ख्वाब सारे लिए
अपनी आँखों में तुम इक शहर सोचना
सोचना अश्क़ ताज़ा लिए चश्म में
प्यास जिससे बुझे वो नजर सोचना
राहुल ✍️✍️✍️