मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा,
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा I
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न कर,
अगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा I
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़,
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा I
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो,
जो हँस रहा है वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा I
उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले,
उस आस्तीन से ख़ंजर ज़रूर निकलेगा I
-अमीर कज़लबाश