गीत- आवारा परदेशीमै आवारा परदेशी हूँ, मेरा नही ठिकाना रेओ मृग नयनों वाली सुनले, मुझसे दिल न लगाना रेजब तीर नज़र का किसी ज़िगरको पार कभी कर जाता हैप्यार मुहब्बत में बेचाराचैन नही फिर पाता हैघुट-घुट फिर जीना होता है, पड़ता अश्क़ बहाना रेओ मृग नयनों वाली सुनले, मुझसे दिल न लगाना रेइस दिल का उस दिल से
चाहें महँगा हो जाये पेट्रोल डेढ़ सौ पार।अच्छे दिन की कमी नही है, बढ़िया यह सरकार-जोगीरा सारा रा रा रा।।राजनीति में करते नेता, रुपयों से हैं खेल।महँगाई में बढ़ता देखो, आज नमक और तेल-जोगीरा सारा रा रा रा।।झूठे वादे करके नेता, लड़ते खूब चुनाव।भोली-भाली जनता के दिल, पर करते हैं घाव-जोगीरा सारा रा
सगुण छन्द122 122 122 121कहे गर्भ से आज बेटी पुकार।नही इस तरह कोख में मातु मार।यही चाहती माँ तुम्हीं से जवाब।बनी बेटियाँ क्यों जगत में खराब।रहीं देश में बेटियाँ भी सुजान।सदा आप समझो सुता-सुत समान।करो माँ न कच्ची कली पे प्रहार।नही इस तरह कोख में मातु म
स्त्री अभिलाषा चाह नहीं मैं क्रूर व्यक्ति,अनपढ़ संग थोपी जाऊं । चाह नहीं पौधे की तरह, जब चाहे जहां रोपी जाऊं ।। चाह नहीं शादी की है, जो दहेज प्रथा में मर जाऊं । चाह नहीं अपने अधिकारों, से वंचित रह जाऊं ।। हम अवला को कुछ और नहीं,
'मुक्तक चार पंक्तियाँ भार सम,मुक्तक का सिद्धांत lपंक्ति तृतीयं मुक्तता , तजि सामंत पदांत llव्यंग्य और वक्रोक्ति में , साधें शेर सदृश्य lपंक्ति तृतीयं सार है , निष्कर्षं परिदृश्य llराजकिशोर मिश्र राज प्रतापगढ़ी