मोहब्बत
“कहा न माँ, मैं अब किसी भी लड़की को नही देखूँगा” मैने कुछ तस्वीरों को माँ के सामने टेबल पे रखते हुए कहा तो वो बोली “तो तू ही क्यों नही पसंद कर लेता है किसी को”।
माँ अपना वही रोज़ का राग अलापने लगी और मैं उनके चुप होने का इंतजार करने लगा, वो रुकीं तो मैं उनके नज़दीक गया और उनके हाथों को अपने हाथ मे लेकर बोला “जनता हूँ माँ, इस दुनिया की भीड़ में आप मेरे ही लिए किसी एक खास लड़की को ढूंढ रही हो, लेकिन माँ वो मिलनी होगी तो कहीं भी मिल सकती है, उसको हम ढूंढ ले ये ज़रूरी नही”।
माँ ने सामने रखी तस्वीरों में से एक लड़की की तस्वीर उठाकर कहा “इसमे क्या बुराई थी” मैने तस्वीर देखकर कहा बुराई किसी मे नही माँ, इस लड़की को अभी शादी नही करनी थी, आपकी ही तरह उसकी माँ ने भी शादी की जल्दबाजी कर दी होगी, उसने मुझे जब ये बताया तो, मैं खुद पीछे हट गया, उसे अभी कुछ करना है जिंदगी में”।
माँ ने हार मानकर कहा “हाँ मुझे ही जल्दी है, ठीक है तू, मेरे मरने के बाद कर लेना शादी, मेरी अस्थि के लौटे से आशीर्वाद ले लेना”। मैंने “हो गया आपका ड्रामा शुरू” केहकर उन्हें गले लगा लिया और प्यार से बोला “मेरी प्यारी सी माँ, मुझे कोई ऐसी लड़की चाहिए जिसे देखकर जिंदा होने का अहसास हो, जिसकी आवाज़ मिश्री हो और जो जितनी ऊपर से सुंदर हो उससे ज्यादा दिल से हो, जो खुदसे पहले बाकी को रखे, जो आपको मुझसे ज्यादा प्यार करे माँ”
माँ ने धीरे से मेरे सर पे हाथ मारा और कहा “बस कर अब मास्का मत लगा, ऐसी लड़की अब कहाँ देखने को मिलती है, जो सास को माँ कहे”।
बात होने के कुछ देर बाद माँ ने मुझे काम पे जाते देखकर कहा “बेटा आज जल्दी आ जाना, शाम को कथक कॉम्पिटिशन में जाना है” मैने जाते हुए कहा “हाँ माँ याद है, आपकी फ्रेंड सरोज जी ने ऑर्गेनाइज किया है ना, मैं पहुँच जाऊँगा आप मेरे बिना ड्राइवर के साथ निकल जाना, मैं सीधे वहीं आ जाऊँगा”।
उस शाम,
मैं स्टेज शो शरू होने के बाद पहुँचा था, मैं माँ के साथ कि सीट पे जाकर बैठ गया और शो जारी रहा।
कुछ देर बाद मेरी नज़र स्टेज पे जम सी गयी, क्योंकि मेरी नज़रो के सामने कोई थी जो कथक कर रही थी, वो बेइंतहा खूबसूरत थी, उसका दुपट्टा उसके कंधों से होकर उसकी कमर पे कसा था, उसके खुले बाल सीधे थे और जैसे ही वो कोई एक चक्कर लेती, उसके बाल भी उसके चारों ओर का एक चक्कर लगा लेते, उसके पैर तेज़ी से चल रहे थे और टेबले कि धुन के साथ उसके घुँघरू ताल से ताल मिला रहे थे।
मैं खोया हुआ था उसके जादू में तभी माँ की आवाज़ आई “जा बेटा तुझे सरोज आँटी बुला रही हैं”।
मैं उठकर चलता हुआ भी स्टेज पर कथक कर रही उस परी को ही देख रहा था, वो अभी किसी हिरनी की तरह घूमे जा रही थी, मैं अबतक सरोज आँटी के पास आ गया था, मुझे याद नही उन्होंने क्या क्या कहा, क्योंकि मेरा सारा ध्यान तो शायद उस लड़की पे था।
शो के अंत में प्राइस दिया गया था, उस लड़की को पहला स्थान नही मिला था, पर उसने दूसरा स्थान ज़रूर लिया था, सरोज आँटी के कहने पे मैं और मेरी माँ उन दोनों जितने वाली लड़कियों से मिलने गए।
वो ठीक मेरे सामने थी, एक हल्की मुस्कान को अपने चेहरे पे सजाये, सरोज आँटी ने उसका नाम बताते हुए कहा “अमर बेटा ये सावित्री है”। मेरी नज़र अभी तक उसके चेहरे पे थी कि पीछे से माँ आगे आते हुए बोली “क्या कोन है ये, सावित्री” मैने माँ को देखकर पूछा आप जानती हो माँ इन्हें” माँ ने सरोज आँटी को देखकर कहा “तेरी बेटी सावित्री इतनी बड़ी हो गयी, कितने साल बाद देखा, इतनी सी थी” माँ अपने हाथ के इशारे से बताने लगी। पर मेरी नज़र फिर एक बार सामने उस सावित्री नाम की लड़की पे थी जो मेरी माँ की बेस्ट फ्रेंड सरोज आँटी की बेटी थी।
अंत मे सावित्री से हाथ मिलाकर मैने उसे बधाई देते हुए कहा “आप बहुत अच्छा कथक करती हैं, पर पहला स्थान उन्हें क्यों दिया” सावित्री ने मेरी आँखों मे देखा और फिर अपना जीता हुआ, प्राइस दिखाकर कहा “हमे वो मिला जिसे जितना हमने चाहा था, पहला दूसरा ये सब लगा रहता है, आज हमने उस धुन पे कथक किया है, जो हमारी माँ का बनाया हुआ है”।
देर रात घर आकर भी मेरे ज़ेहन से सावित्री और उसकी बात नही जा रही थी, मैं खुद ही मन मे हँसने लगता जब उसे अपनी ओर देखता हुआ याद करता।
“अरे, अबतक सोया नही” माँ मेरे कमरे में आते हुए बोली और मेरे बेड पे आकर बैठ गयी”।
मैं उन्हें देखता रहा और वो भी वैसे ही देखती रही, फिर हम एक साथ हंस दिए, मैने अपना चेहरा छुपाने के लिए कहीं और देखना चाहा तो माँ ने कहा “क्यों, पसंद आई सावित्री”
मैं चुप रहा, माँ मेरे करीब हुई और मेरा सर चूमकर धीरे से कहा “मैं बात करुँगी सरोज से, सावित्री के लिए”।
मैं मन मे खुशी से झूम उठा था, और मैने माँ को गले से लगाकर कहा “आप सबसे अच्छी माँ हो माँ, कैसे जाना आपने मेरे मन की बात को”। “माँ हूँ इसलिए” ऐसा केहकर वो चली गयी और उसरात सपनों के मेले एक नया किरदारा आ गया था मुझसे मिलने जिसका नाम सावित्री था।
कुछ ही दिन में सरोज आँटी से बात करके माँ ने सावित्री और मेरा ज़िक्र छेड़ा, जिसके बदले में सरोज आँटी ने ये केहकर माँ को गले से लगा लिया “तू क्या बोल रही है, इस रिश्ते के लिए हम खुद तुझसे कहने वाले थे”।
फिर वक़्त का कुछ पता नही चला दोनों परिवारों में बात और तारीखों में कुछ हफ्ते और गुज़र गए, शादी की तारीख रखने की शाम जब पण्डित जी ने एक खास मुहर्त का ज़िक्र किया तो सब उसपे राज़ी हो गए, तारीख के तेय होने के बाद शाम को मैने सावित्री को देखा, वो मेरे घर के गार्डन में एक बेंच पे बैठी थी।
मुझे उससे कुछ बात करने का मौका ही नही मिला था, क्योंकि अब ये मेरी मर्ज़ी की शादी से ज्यादा मेरी माँ और सरोज आँटी का वादा था।
मैं बेंच के पास गया तो उसने मेरी तरफ मुड़कर देखा, वही दो काली आँखे और गुलाब की पंखुड़ियों से नाज़ुक होंठ। “आज लगता है बारिश होगी” मैने आसमान को लाल रंग लेता देख सावित्री से कहा।
उसने एक नज़र आसमान पे डाली की कुछ नन्ही बूंदे बरसने भी लगी। मैने कहा “लो शुरू हो गयी बारिश”।
सावित्री अभी भी बेंच पे थी, तो मैने कहा “अब बारिश तेज़ हो गयी है चलिए आप घर मे आइये”। ये केहकर मैं बारिश से बचते हुए तेज़ी से वापस मुड़कर जाने लगा, पर कुछ कदमों बाद मैंने मुड़कर देखा तो सावित्री बेंच के पास खड़ी थी और भीग रही थी, उसकी बाहें थोड़ी फैली हुई थी जैसे वो भीगना ही चाहती हो।
मैं वापस उसके नज़दीक गया, वो बहुत खूबसूरत थी, घने काले बालों की लटें उसके चेहरे पे थी और बारिश की बूंदें उसके गुलाबी होंठो पर ठहरी हुईं थी।
मैं उसे देखता ही रहता अगर माँ की दूर से आती आवाज़ ये ना कहती “बेटा सावित्री को अंदर ले आओ, बारिश तेज़ हो गयी है”।
सावित्री ने अपनी बन्द आँखे खोलकर मुझे देखा तो मैने कहा “चलें” ये केहकर मैने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया उसने एक पल देखा फिर मेरे हाथ पे अपना हाथ रख दिया। मैं उसका हाथ थामे घर के अंदर चला आया।
फिर हम मिल नही पाए और शादी का दिन भी आ गया, सुबह से चल रही हड़बड़ाहट शादी के बाद बिदाई के साथ थमी। मेरे घर मे आकर सावित्रि ने अपना ग्रह प्रवेश किया, माँ ने उसका सर चूमकर उसे अपनी बेटी कहा और देर रात माँ की गोद मे सर रखकर मैने कहा “मुझे सब कुछ मिल गया है माँ और ये सब आप की वजह से” माँ ने मेरे सर पे हाथ फिराते हुए प्यार से कहा “सावित्री बहुत अच्छी लड़की है अमर, उसे बचपन में हमने अपनी गोद मे खिलाया है, फिर वो पढ़ने बाहर चली गयी और वापस आकर सरोज के साथ ही रही, मुझे उम्मीद है तुम दोनों एक दूसरे के लिए एक बेहतर जीवन साथी साबित होगे”।
शादी की पहली रात, जब मैं अपने बेडरूम में दाखिल हुआ तो सामने एक परी को लाल जोड़े में बैठा देखा, जो बेड के बीच मे खुदको समेटे हुए बैठी थी और उसके चारों तरफ बेड पे गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी हुई थीं।
मैं बेड की तरफ बढ़ते हुए अपना गला साफ करने लगा, मेरे गले से आई आवाज़ के बाद कुछ चूड़ियाँ भी खनकी थी उसके हाथों से, मैं बेड के किनारे बैठ गया और उसकी तरफ देखा तो पाया, एक चाँद को आज एक घूँघट ने खुदमे छुपाया हुआ था।
क्या कहूँ, या किस बात का ज़िक्र करूँ के ख्यालात मुझपे हावी होते जा रहे थे, और उसकी खामोशी मुझे बेचैन कर रही थी। मैंने खामोशी खत्म करते हुए कहा “वो आपको कुछ चाहिए तो नही”। वो अब भी खामोश थी, कुछ पल और गुज़र गए तो मैने मुस्कुराते हुए एक शायरी कही
“तुम पर्दे में तो हम दूर ही सही,
देखते रहें यूँही,
ये नज़रे हमारी मजबूर ही सही।
उसका घूँघट थोड़ा सा उठा जैसे उसने मेरी तरफ देखा हो, फिर उसने धीरे से अपने मेहंदी लगे हाथो से अपना घूँघट उठा दिया, तो मेरी आँखों के सामने उसका चेहरा आ गया।
मैने धीरे से पूछा “क्या आपको भी लगता है, कि बहुत जल्दी जल्दी हो गयी ये शादी, आपको हमसे या हमे आपसे बात करने का कोई मौका ही नही मिला”। उसने जवाब दिया पर इतना धीरे कि, मैं समझ न सका, तब मैने कहा “ग़ालिब कहते है,
“सवाले वस्ल पर, उनको उर्दू का डर है इतना,,
दबे होंठों से देते है, जवाब वो,
आहिस्ता आहिस्ता।
“आपको शायरी का शोक है” सावित्री ने मुझे सवाल किया तो मैने कहा “किया करता था, पर अब आपको देखकर फिर करने लगे हैं”।
हमने कितनी देर तक ऐसे ही बाते की, फिर मैने बेड के सिरहाने तकिये को लगा कर लेटते हुए कहा “देर हो गयी है, आइये सो जाइये”।
उसने एक नज़र बेड पे डाली और कुछ सोचने लगी तो मैने कहा “जानती हैं आप, आपको पहली बार देखकर ही पसंद कर लिया था, पर मैं जानता हूँ किसी को पसंद करने और खुद किसी और को पसंद आ जाने में फर्क है”।
सावित्री ने मेरी तरफ नज़रे की तो मैने कहा “मेरी तरफ से आपके लिए पूरी मोहब्बत है, अब आप हमें आजमाइये हमे उम्मीद है हैम आपको निराश नही करंगे”।
सावित्री भी मेरे बगल में लेट गयी और उसने कहा “आपने शादी क्यों कि”। मैने कहा “क्योंकि अगर मैं नही करता तो बाद में आप नही मिलती”। वो उठकर बैठ गयी और अपने ऊपर लदे जेवर को उतारते हुये बोली “आप सीधा जवाब क्यों नही देते”।
मैने मुस्कुरा के कहा “क्योंकि शायरी किया करते थे और,,, इससे आगे मैं बोलता की सावित्री ने कहा “अब फिर करने लगे होंगे” ये केहकर उसने मेरी तरफ़ देखा तो मेरी हँसी छूट गयी और वो भी मुस्का दी थी।
दिन पे दिन गुजरने लगे और हम दोनों को एक दुसरे की आदत भी होने लगी, हम हंसते एक दूसरे से मज़ाक करते, घूमने जाते एक दूसरे से अपने दोस्तों की बाते करते पर शायद वो मोहब्बत अभी हुई नही थी, जिसमे कुछ भी हिचकिचाहट बाकी नही रहती, जिसमे बिना एक दूसरे से कुछ कहे सब जान लेना आ जाता है, शायद अभी इस मोहब्बत में वक़्त था, लेकिन कहते है ना अच्छा वक्त कब आएगा इसका अंदाज़ा तो हम लिए चलते है पर बुरा वक्त तो हमेशा साथ ही होता है, ठीक वैसे ही जैसे शादी के एक साल के बाद मुझे सावित्री उसकी अपनी डायरी मिली जिसमे शायद उसके वो अल्फ़ाज़ थे जिन्हें उसने अपने लफ़्ज़ों में तो नही ढाला लेकिन कलम से डायरी के कागज़ पर जरूर उतार दिया था।
सुबह मैं देर से उठा और सावित्री माँ के साथ बाहर गयी हुई थी, आलस करता हुआ घर मे इधर उधर होने लगा, लेकिन बेडरूम के पास रखी मैगज़ीन पे मैने सावित्री की डायरी देखी, वही लाल रंग के कवर वाली डायरी जिसे मैने पहली बार सावित्री के साथ शादी के हफ्ते भर बाद देखा था, मैने उस डायरी को सावित्री के सामने उठाया था तो वो थोड़ा सा नाराज़ होकर बोली थी, “प्लीज् इस तरह किसी की डायरी पढ़ना अच्छा नही है, किसी कोई चीज़ बहुत पर्सनल होती है”। तब से अबतक दोबारा नही देखा था इस डायरी को शायद वो छुपाकर रखती हो, पर आज वो मेरे सामने थी और मैं आज उसे पड़ने वाला था, सिर्फ इसलिए कि मैं जान सकू सावित्री मेरे बारे में क्या लिखती है।
मैं डायरी को अपने साथ लिए बालकनी में आ गया और वहीं आराम कुर्सी पे बैठकर मैने उसे खोला, उसके पहले पन्ने पे गाढ़े शब्दो मे “डेयर डायरी” लिखा था।
कुछ तारीखे आज से छः साल पुरानी थी, लगभग तबकी सह्यड जब सावित्री कॉलेज फर्स्ट ईयर में थी तब तो वो होस्टल में रहा करती थी, उसी ने बताया भी था।
“डेयर डायरी, आज हमने होमवर्क नही किया था पर फिरभी हम बाख गए क्योंकि, होमवर्क किसी ने नही किया था” ये एंट्री भी शायद उसके शुरुआती कॉलेज लाइफ की थी।
मैं इन्ही छोटी बातों को पढ़कर हंसता और पन्ना पलटकर आगे पढ़ने लगता। “देअर डायरी, फर्स्ट ईयर खत्म होने को आया है अबतक मेरे कई दोस्त तो बन गए लेकिन कोई खास नही” ये लिखने के बाद नीचे कोने पे एक मुह बनाता स्माइली बना हुआ था, देखकर मेरे चेहरे पे भी एक हंसी आ गयी।
“डेयर डायरी, आई लव मनीष,” मेरे हाथ इस पन्ने पे आकर रुक गए और मैने देखा पूरे पन्ने पर जगह जगह बस यही लिखा था, मेरे मुंह से निकला, “मनीष कौन है”।
मैने जल्दी जल्दी के और पन्ने पलटे, और कुछ महीनों के सफर आगे बढ़ गया, एक तारीख की एंट्री पे एक ग़ज़ल की कुछ लेने लिखी थी “दिल-ऐ-नादान तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है,
हमे है उनसे वफ़ा की उम्मीद,
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
मै इन लाइनों को पढ़ता रहा, कई बार पढ़ा, तभी नीचे से माँ और सावित्री को आते देखा तो मैने जल्दी से डायरी को चुप फ़िया और खुद नीचे पहुँच गया, सामने सावित्री मंदिर का प्रशाद लिए मेरे सामने थी, मैने परशाद ले लिया और सावित्री को देखा, वो हमेशा की तरह खुश लग रही थी, मुझे अच्छा भी लगा उसे देखकर और दिल के कहीं किसी हिस्से से एक सवाल भी आया कि, क्या सावित्री के दिल मे कोई और था या है।
देर रात सावित्री के सोने के बाद मैं, उसकी डायरी को पढ़ने बाहर गार्डन की बेंच पे चला आया।
आज से चार साल पहले की एंट्री थी, लगभग सावित्री का कॉलेज में आखरी साल था वो।
“आज फिर मेरा दिल तोड़ा है मनीष ने, जब भी हमे कुछ कहना होता है उससे, वो हमसे कोई शायरी या ग़ज़ल लिखवाकर किसी और को इंप्रेस करने के लिए चला जाता है, क्या कभी भी वो ये नही देख पायेगा की उसकी ये पढ़ाकू उसे मन ही मन मे कितना चाहती है”।
इसे पढ़ने के बाद मैने अपनी नज़रो को डायरी से हटा लिया, मन में सावित्री का कहा याद आया “किसी की डायरी पढ़ना अच्छी बात नही, ये पर्सनल होती है”।
मैं बेडरूम में लौट आया और बेड के आधे हिस्से पे लेटी सावित्री को देखने लगा, बड़ी मासूम लग रही थी सोती हई, मैं भी लेट गया और सो गया।
“अरे अमर बेटा, आज तेरे चाचा जी ने कहा कि तुम दोनों बच्चों को कहीं घूमने जाने को कहूँ” माँ ने नाश्ते पे कहा था, तो मैने कहा “क्या माँ हम कहाँ जाएंगे”। मेरा रुखा बर्ताव साफ दिख रहा था अब, सावित्री चुप थी फिरभी मैने पूछा “वेसे अगर तुम जाना चाहो तो, कोई जगह का नाम ले सकती हो”। सावित्री ने बिना सोंचे बस गोवा कहा था, माँ तो खुश थी पर मेरा मन मे आ रहा था कि, गोवा में ज़रूर कुछ ऐसा होगा जिससे उसकी याद जुड़ी हैं।
उस शाम नज़रे बचाकर मैं एक बार फिर डायरी के साथ था।
“वेलेंटाइन, क्या तुम इस बार हमारे वैलंटाइन बनोगे, यही सोच रही थी सारा दिन वैलेंटाइन से पहले, पर तुम रात में आये, और होस्टल में अब आना जाना अलाउड नही था, रात में किसी तरह बचते बचाते हम तुमसे मिलने पहुँचे तो तुमने आगे बढ़कर हमारा हाथ कितने प्यार से थाम लिया था मनीष, काश वो वक्त वहीँ थम गया होता पर शायद तुम जल्दी में थे, तुमने हमे बेंच पे बिठाया और हम तैयार थे वो सुनने के लिए जो अबतक तुमने नही कहा था”।
मैने डायरी को झटके से बंद कर दिया और गुस्से से तेज़ तेज़ सांसे भरने लगा, मेरे सामने वो डायरी अभी भी पड़ी थी, मैं अब पढ़ना नही चाहता था, लेकिन पढ़ने पे मजबूर हो गया था, पता नही कब मैने फिर उस डायरी को उठाकर आगे पढ़ना शुरू कर दिया।
“तुम कहते उससे पहले शायद हम कह देते लेकिन तभी तुमने एक ग्रीटिंग हमारी तरफ बढ़ाकर कहा “प्लीज यार पढ़ाकू,, कोई अच्छी सी पोएम या शायरी लिखदे, जिससे पूनम का दिल जीत लूं मैं”।
मैने डायरी के अगले पन्ने को पलटा तो देखा, कुछ लिखा था जो सावित्री के टूटे दिल का आईना था,,
“है ये मोहब्बत ख़ुदखुशी ऐसी,
जिसमे है खुशी और जान का जाना भी,
कि केह दो कोई अब इसे भी, वो आरज़ू
जिसमे है सबकुछ खोकर, कुछ पाना ही।
इसके आगे भी कई और लाइने थी पर सावित्री ने उनपे पेन चलाकर उसे काट रखा था, जिसे मैं पढ़ नही सका।
सारा दिन सावित्री को देखता रहा, वो मेरे घर मे घुलमिल सी गयी थी, पर उसके दिल का कोई हिस्सा अभी भी अनछुआ सा ही था, मैने गोवा जाने की तैयारी कर ली थी।
गोआ जाने से पहले की रात मैं अकेला बालकनी में खड़ा था कि सावित्री पीछे से आकर मेरे साथ खड़ी हो गयी, कुछ कहा नही उसने बस वैसे ही खड़ी रही, मैने एक नज़र उसे देख तो वो हल्के से मुस्कुरा दी, मुझे भी उसे मुस्कुराता देख अच्छा लगा था।
हम गोआ आ गए थे, और कई जगह घूमे, यहां कितने ही नए जोड़े साथ थे, एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले।
“सर क्या आप हमारी एक तस्वीर खींच देंगे” कहते हुए समुन्दर किनारे एक नोजवान लड़के और लड़की के जोड़े ने मुझे अपनी तस्वीर खींच देने के लिए कहा, मैने उनकी कुछ तस्वीरें ली तो वो बोले “ सर ये आपकी वाईफ हैं” मैने हाँ कहा तो, वो तस्वीर खींचने की ज़िद करने लगे, सावित्री और मैं एक साथ एक फ्रेम में खड़े थे, उस लड़के ने कहा “सर थोड़ा और करीब” मैं थोडासा और सावित्री के करीब हो गया, लेकिन वो लड़का अभी भी करीब होने को बोल रहा था, फिर आखिर में वो बोला “सर ऐसे” उसने अपनी प्रेमिका को अपने करीब करते हुए बोला तो मैं सावित्री को देखने लगा, फिर सावित्री मेरे नज़दीक आई और मेरे कंधे से अपने हाथ लगाकर कैमरे की तरफ देखने लगी, पर मैं बस सावित्री को देखता रहा, वो बेहद खूबसूरत लग रही थी, तभी उस लड़के की आवाज़ नज़दीक से आई, “हो गया सर, अब आप हट सकते हैं”।
उस लड़के के जाने के बाद सावित्री और में काफी देर कुछ नही बोले थे, और वापस होटल आ गए।
देर रात सावित्री के सोने के बाद मैं उस दायरी को फिर पढ़ रहा था, अब तारीख बस दो साल पुरानी थी “यकीन नही होता दुनिया इतनी छोटी है, कॉलेज के खत्म होने के बाद तुमसे कभी मिलने की कोशिश नही की ओर आज तुम्हे गोआ में देखा, वैसे हमे अंदाज़ा नही था कि तुम मनीष, अब पूनम से शादी करने के बाद यहां गोवा में आकर रहने लगे हो, हम तो यहां होटल मैनेजर की पोस्ट पे आये थे, अपनी पहली नोकरी के लिए, और तुमसे मिले तो तुमने अपने घर रहने को कह दिया”।
मैने मुड़कर देखा कि कहीं सावित्री जागी तो नही, वो अभी भी सो रही थी, तो मैने पढ़ना जारी रखा।
"कुछ महीने में ही हमने तुम्हें पूनम से लड़ते देखा, तुम दोनों परफेक्ट कपल नही थे, क्योंकि तुम्हारे लिए हम थे, पर तुमने पूनम को चुना था अपनी जिंदगी के लिए, पर उस दिन जब हम तुम्हारे घर से जा रहे थे तो तुमने वो क्यों किया जिसे कभी तुम्हारी आँखों मे हमने नही देखा था”।
डायरी के आगे के सारे पन्ने फटे हुए थे, और अब कुछ नही था पढ़ने को उस डायरी में।
गोवा का हमारा प्लान अब बस कुछ दिन और का ही रेह गया था, पर उस डायरी की बाते मुझे परेशान कर रही थी, की शादी से पहले ही सावित्री ने डायरी को लिखना बन्द कर दिया था पर डायरी हमेशा अपने पास रखी क्यों, उसने उसके आगे के पन्ने क्यों फाड़े होंगे, उसमे क्या लिखा था, कहीं,,”।
न जाने कैसी केसी कल्पना करने लगा था अब मन, मैं सावित्री को चाहता था पर अब उसपर भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा था।
गोवा की शाम अब ठंडी हो चली थी, लोग नंगे पांव रेत पे चल रहे थे, सूरज अभी चंद मिनटों पहले ही डूबा था, मैने देखा सावित्री रेत पे एक तरफ बैठी थी, और जहाँ सूरज अभी डूबा था वही देख रही थी, हल्की बहती हवा में उसके बाल लहराकर उसके कंधे पे झूल रहे थे, और उसके मेहंदी लगे हाथो में मेरे नाम की अंगूठी चमक रही थी।
मैने खुदसे कहा कि, सर्फ एक डायरी और उसका बिता हुआ कल मुझे सावित्री पे शक नही करने दे सकता, वो मेरी प्यारी सी बीवी है जिसे मैं खुद अपनी ज़िंदगी में लाया हूँ, मुझे उसपर भरोसा करके उसे सब बताना होगा इस डेयरी के बारे में।
मैं धीमे कदमों से हाथों में उसकी डायरी लिए बढ़ा, उसके नज़दीक जाकर मैं बैठ गया, उसने मेरी तरफ देखा, उसके चेहरे वे एक हल्की मुस्कान थी, मैने उसे डायरी दे दी, उसने अपने हाथ मे डायरी लेकर कहा “ये ,,हमारी डायरी आपके,,”।
मैने सर झुकार कहा “माफ करना सावित्री, मैने इसे पढ़ लिया, शायद काफी दिनों से पढ़ रहा हूँ”।
सावित्री ने मेरी तरफ नज़रे की और डायरी को अपने पास रख लिया, फिर वहीं दूर समुन्द्र और आकाश के मिलने वाली जगह को देखने लगी, मैं खामोशी से बैठा रहा।
“तुम नाराज़ हो” मैने कहा तो सावित्री ने बिना मेरी तरफ देखे कहा “नही,”। “तो फिर इतनी चुप क्यों हो” मैने कहा तो उसने मेरी तरफ देखा, उसकी आंखें भारी हुई थी और उसके बाएं गाल पे एक आँसूं की धारा बह निकली थी। वो बोली “इतनी चुप क्यों हैं,, शायद इसलिए क्योंकि आप हमसे कुछ कहते नही, बस हाँ या नहीं सुन्ना चाहते हैं”।
मैने हाथ बढ़ाकर उसके आँसू को पोछते हुए कहा “ऐसा नही है सावित्री, वो डायरी मुझे सता रही थी, बार बार तुमपे,,,,,” सावित्री ने आगे कहा “शक करवा रही थी न, हमपर”।
मैने उसकी आंखों में देखा, तो वो मेरे थोड़ा करीब होकर बोली “तो आज आप क्या कर रहें हैं, शक या सवाल”।
मैने धीरे से कहा “बस यही की मुझे उस डायरी को पढ़ना नही चाहिय था”।
वो हल्के से मुस्का दी तो मैने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा “मुझे तुमपर भरोसा है, खुदसे भी ज्यादा, क्योंकि मैं तुम्हारी एक बात नही मान सका, इस डायरी को न पढ़ने की, लेकिन तुम मेरी हर बात का ध्यान रखती हो”।
सावित्री ने एक गहरी सांस भरकर कहा “डायरी आपने पढ़ी ये हमे पहले से पता है”। मैने उसे हैरानी से देखा तो वो बोली “उस दिन हम इसे फेंकने वाले थे पर आपने उसे उस जगह से उठाकर अपने पास रख लिया था, रात में आप पढ़ते तो हम देखते थे”।
मैने कहा “तो फिर कहा क्यों नही” उसने धीरे से कहा “ शायद हम चाहते थे कि आप पढ़ो और ये भी देखना चाहते थे कि क्या एक गुज़रे वक़्त का किस्सा, आपको बदल देगा”।
मैने कुछ कहा नही बस उसे देखता रहा तो उसने मेरा हाथ थामकर कहा “पर आप बदले नही”।
मैने डायरी अपने हाथ मे ली तो उसने कहा “वो हमारा उन्नीस बीस का प्यार था, जिसे पाना चाहा था कभी लेकिन बाद में पता चला कि, अच्छा हुआ जो वो हमें नही मिला”।
मैने उससे पूछा “पर ऐसा क्यों”। उसने कहा “आपको नही जानना की उन फटे पन्नो में क्या था”। मैने उसका हाथ थामा और कहा “चाहे कोई भी बात हो, फर्क नही पड़ता, तुम मेरी परफेक्ट लाइफ पार्टनर साबित हुई हो, और मुझे हर बात पे भरोसा है तुम्हारी”।
उसने डायरी के फटे पन्नो को खोलकर देखा और कहा “इस डायरी में अखरी एंट्री तबकी है जब, हमारे लिए आपका रिश्ता आया था, और हमने उससे कुछ ही महीने पहले यहाँ गोवा की अपनी जॉब से स्तीफा लिया था”।
मैने उससे कहा “तुमने जॉब क्यों छोड़ा” उसने कहा “जॉब अच्छा था, हम खुश थे, पर मनीष के घर रहकर ये जाना की, धीरे धीरे उसके और उसकी पत्नी के बीच हमारी वजह से बाते होने लगी, तो हमने उस जगह को छोड़ा दिया, उस दिन मनीष ने अपने दिल से हमे गले लगाकर वो कहा था जिसे सुनने भर को हम सालों, तन्हा रहे थे, पर अबतक बहुत आगे निकल आये थे हम, उसके मुंह से वो सुनकर भी हमे कुछ फील नही हुआ था, तब हम समझ गए कि हम आगे आ चुके हैं और हमने जॉब छोड़ी क्योंकि मनीष ने डिवोर्स ले लिया था और पूरा कॉलेज रियूनियन करने हमारे जॉब की जगह उसी होटल में आने वाला था, लेकिन तभी माँ ने अपनी फोटो भेजी थी हमे”।
मैं धीमे से मुस्का दिया और बोला “वो फ़ोटो उतनी अच्छी नही थी”। सावित्री मुस्कुराई और बोली “थी वो, बहुत अच्छी फ़ोटो थी आप अपनी माँ के साथ बहुत अच्छे लग रहे थे, हमने शादी के बाद ये जाना कि आप बहुत अच्छे है, जो अपनी माँ से इतना प्यार करता है वो दुनिया मे हर औरत की बहुत इज़्ज़त भी करता है, ये देखा हमने आपमें”।
थोड़ी देर वो मेरे और नज़दीक होकर बैठी रही, रात हो चुकी थी और हम वापस होटल की ओर चल दिये थे, मैने उसका हाथ थामे रखा था और वो मेरे कंधे से लगकर चल रही थी।
होटल में आकर मैने उससे पूछा “पर तुमने डायरी लिखना क्यों छोड़ा” उसने अपने बैग से एक डायरी निकाल कर कहा “क्योंकि अब इस डायरी को लिखना शुरू करना था”।
मैने डायरी ली तो देखा, उसके पहले पन्ने पर लिखा था “डेयर डायरी,”।
मैं मुस्कुरा के उसे देख रहा था और वो मेरे करीब आकर गले से लगकर बोली “आई लव यू, हमे तो आप पहली मुलाकात में ही भा गए थे, क्योंकि आपका शायरी करना हमे अपनी याद दिलाता है”।
मैने उसे बाहों में भरते हुए कहा “अच्छा वो एक शायरी या कविता थी तुम्हारी डायरी में, लिखा था,,
“है ये मोहब्बत वो ख़ुदकुशी ऐसी,
जिसमे है खुशी और जान का जाना भी,
की कह दो कोई अब इसे भी, वो आरज़ू
जिसमे है सबकुछ खोकर भी, कुछ पाना ही,,
“पर इसके आगे क्या, वो लिखी हुई लाइने पढ़ने काबिल नही थी”। मैने कहा तो सावित्री ने मुस्कुरा के ऊपर चेहरा किया और कहा “
“वो मिला तो ये मुकम्मल सही,
न मिला तो ये अफसाना,।।
मैने उसे कसते हुए कहा “वाह, वाह क्या बात है यार, तुम तो हमारी भी उस्ताद निकली, अब हमें भी कुछ सुनाने की इजाज़त दो”
मैने उसे सामने बेड के किनारे बिठाया और उसके आगे आकर कहा “तेरे आ जाने से ये जिंदगी अब रोशन-ऐ-गुलज़ार है,
क्यों न चाहूँ तुझे जब तू ही मेरी हर धड़कन की पुकार है,
अगर ये मोहब्बत नही तुमसे तो मेरी ये दिल्लगी ही सही,
वरना ये चाहत के वादे इस दुनिया में सब बेकार हैं,,”।।
…….(Sajid)