मुहर्रम :(अरबी/उर्दू/फ़ारसी : محرم) इस्लामी वर्ष यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना है। इस महीने में मुसलमान खास तौर पर शिया मुस्लिम पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं. इमाम हुसैन कर्बला के मैदान में अपने साथियों के साथ शहीद हो गए थे. मुहर्रम की दसवीं तारीख को मनाए जाने वाले यौम-ए-आशूरा के दिन ही ताजिए निकाले जाते हैं. इस बार यौम-ए-आशूरा 29 जुलाई को मनाया जाएगा. मुहर्रम के महीने की 10 तारीख को मुस्लिमों के नबी हज़रत इमाम और हज़रत हुसैन की शहादत हुई थी. इसी को लेकर मुस्लिम समाज इस पूरे महीने को गम के रूप मनाता है. मुहर्रम की 10 तारीख को शिया मुस्लिम मातम करते हैं. ताजिए बनाए जाते हैं, फिर उनको कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक किया जाता है.मुहर्रम महीने के १० वें दिन को 'आशूरा' कहते है। आशूरा के दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन को और उनके बेटे घरवाले और उनके साथियों (परिवार वाले) को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था। मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। इस माह की बहुत विशेषता और महत्व है। मुहर्रम शब्द का अर्थ निषिद्ध या निषिद्ध है । कहा जाता है कि इस्लाम से पहले इस महीने को सुरक्षित उल अव्वल कहा जाता था. नए चाँद के दिखने से इस्लामी नव वर्ष की शुरूआत होती है। इसे शहीद को दी जाने वाली शहादत के रूप में मनाया जाता हैं. इस माह के 10 दिन तक पैगम्बर मुहम्मद साहब के वारिस इमाम हुसैन की तकलीफों का शोक मनाया जाता है, लेकिन बाद में इसे, जंग में दी जाने वाली शहादत के जश्न के तौर पर मनाया जाता हैं और ताजिया सजाकर इसे जाहिर किया जाता हैं.
इस्लाम में इसे भी मना फरमाया गया है। आला हजरत ने फतवा जारी करके ताजियेदारी को हराम करार दिया था। मोहर्रम में सही तरीका यह है कि रोजा रखें, फातिहा दिलाए, इमाम हुसैन को याद करें और गरीबों की मदद करें।
शिया और सुन्नी दोनों मुसलमान मुहर्रम मनाते हैं; हालाँकि, वे इस अवसर को उसी तरीके से नहीं देखते हैं। शियाओं के लिए, यह उत्सव का दिन है न कि खुशी का, और इस प्रकार, वे 10 दिनों की अवधि के लिए शोक में रहते हैं।
मान्यता न मिलने के कारण पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और यजीद के बीच यही जंग के आगाज का कारण बना. यजीद स्वयं को खलीफा मान बैठा था और अपने अनुसार ही सभी लोगों को धार्मिक गतिविधियों को करने का दबाव डालता था. हजरत इमाम हुसैन ने यजीद के बातों को मनाने से साफ इंकार कर दिया.
शिया धर्मगुरु मौलाना सय्यद राहिब हसन जैदी ने जानकारी दी कि मुहर्रम के महीने में ही इराक के शहर कर्बला में पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को उनके बच्चों और दोस्तों समेत शहीद कर दिया गया था. उन्हीं की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. बता दें कि ईद-उल-अजहा के ठीक 20 दिन बाद मुहर्रम महीना शुरू हो। कर्बला (अरबी: كربلاء, कर्बला) मध्य इराक में एक शहर है, बगदाद के लगभग 100 किमी (62 मील) दक्षिण-पश्चिम में स्थित है, और कुछ मील की दूरी पर मिल्खा झील के पूर्व में स्थित है। हुसैन के पक्ष में सत्तर या बहत्तर लोग मारे गए, जिनमें से लगभग बीस अली के पिता अबू तालिब के वंशज थे। इसमें हुसैन के दो बेटे, उनके छह पैतृक भाई, हसन इब्न अली के तीन बेटे, जाफ़र इब्न अबी तालिब के तीन बेटे और अकील इब्न अबी तालिब के तीन बेटे और तीन पोते शामिल थे। यजीद बहुत ताकतवर था. यजीद के पास हथियार, खंजर, तलवारें थीं. जबकि हुसैन के काफिले में सिर्फ 72 लोग ही थे. इसी जंग के दौरान मुहर्रम की 10 तारीख को यजीद की फौज ने इमाम हुसैन और उनके साथियों का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया.
ऐसे बहुत से मत है जो मुहर्रम को सहयोग करते हैं।