मुझे याद है उसके सृजन के गीत.
उसकी शब्दों से दिया जलाने की काबलियत ,
शब्दों से वीणा बजा दिया करता था वो ,
शिकारी जानवरों को नचा दिया करता था वो अक्सर.
वह अब मूक है ,
उसके शब्द ठिठक गये है अब ,
जब से जल विप्लव के खबरे आई है,
भूकंप ने छीन लिए उसके शब्द,
वह पथरा गया देखकर,
आदमी द्वारा आदमियों की, गरदन रेतते हुए.
वह भाव निरपेक्ष हो गया है अब.