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सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है,
अक्सर भाव उठते है , जब दुनिया सोती है .
पन्ने फड़फड़ाते है,कलम चलने लगती है.
शब्द चमचमाने लगे है, लगता है मोती है .
सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है,
गरीब के आंसू ,किसी अबला की छटपटाहट.
रोटी जुटाने में लगे मजदूर की थकावट .
मुझे छू लेती है भीतर तक कहीं,
तब-तब आत्मा रोटी है. सच मानो !
मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है,