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कहानी -सेल्स का जॉब

17 नवम्बर 2021

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रचित जैसे ही अपने घर पहुंचा, अपने कंधे से ऑफिस का बैग लगभग पटकते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा," नमिता यह बॉस ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है
 क्यों अब क्या किया क्या उसने?
 पता है नमिता पिछले पांच -छः दिनों से एक ही कस्टमर के पास बार-बार जा रहा हूं, पता है क्यों
 क्यों? नमिता ने पूछा 
 झूठ बोलने के लिए, तंग आ गया हूं यार इस सेल्स की नौकरी से,रचित को इतना झल्लाते नमिता ने कभी नहीं देखा।
 पता नहीं आप भी!कभी आप अपने जॉब की तारीफ करते हो कभी आप शिकायत करते हो मेरी समझ से तो सारी चीजें बाहर है जनाब, माहौल को थोड़ा हल्का बनाने का प्रयास करते हुए नमिता ने कहा।

 मेरा बॉस सुनता नहीं, कहता है कि तुम्हें कस्टमर हैंडल करना नहीं आता है, आँखिर क्या करू मै?
 आज फिर मैंने एक्सक्यूज दिया तो कस्टमर कहने लगा कि आप चार -पांच दिन से  एक ही चीज रिपीट कर रहे हो, तुमको ऑर्डर देने से अच्छा तो मैंने ऑनलाइन सामान मंगा लिया होता तो शायद अब तक आ गया होता!
 आज पहली बार अपनी लाइफ में इतने गंदे-गंदे शब्द सुने कि मुठ्ठीयां लगभग भींच गईं थी मैंने कैसे रोकी, मै ही जानता हूं।
 
 सुनो नमिता आज मैं खाना नहीं खाऊंगा मेरी खाना खाने की इच्छा नहीं है।तुम खा लेना।प्लीज 
 
 आप भी ना रचित कैसी बातें करते हो,, कभी अख़बार देर में आता है तो आप भी, अख़बार वाले पर कैसे झल्लाते हो,याद है ना, याद है,"गंगाधर ही शक्तिमान है "
 
 रचित के चेहरे पर मुस्कराहट लौटी देख नमिता ने कहा "
मुझे पता है आप कितने स्ट्रांग हो चलो जल्दी से फ्रेश हो जाओ,आज मैंने पालक पनीर की सब्जी बनाई है.

 "हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया"…गुनगुनाते हुए रचित फ्रेश होने बाथरूम चला गया।

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मूक

9 मार्च 2017
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मुझे याद है उसके सृजन के गीत. उसकी शब्दों से दिया जलाने की काबलियत ,शब्दों से वीणा बजा दिया करता था वो , शिकारी जानवरों को नचा दिया करता था वो अक्सर. वह अब मूक है ,उसके शब्द ठिठक गये है अब ,जब से जल विप्लव के खबरे आई है, भूकंप ने छीन लिए उस

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अपेक्षाओ का बोझ ढोते बच्चे

10 मार्च 2017
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अपेक्षाओ का बोझ ढोते बच्चे किताबो के पुलंदे तले दबे बच्चे तर्क-वितर्क में उलझे बच्चे अविकसित दिमाग से जूझते बच्चे अबोधवय में अर्जित ज्ञान ! ये तो नहीं कुशाग्रता की पहचान क्या ये बन तो नहीं रोबोट ,स्वकेन्द्रित होते बच्चे. संस्कारो से इनका वियोग तो नहीं, क्या ये आध

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कविता क्या होती है

11 मार्च 2017
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------------- सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है, अक्सर भाव उठते है , जब दुनिया सोती है . पन्ने फड़फड़ाते है,कलम चलने लगती है. शब्द चमचमाने लगे है, लगता है मोती है . सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है, गरीब के आंसू ,किसी अबला की छटपटाहट. रोटी जुटाने में लगे मजदूर की

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उत्तराखंड की जल आपदा

21 अक्टूबर 2021
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<div>आपदा की बहुत सी वीडियो फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर की जा रही हैं जिनको देखकर रोंगटे खड़े

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कहानी -सेल्स का जॉब

17 नवम्बर 2021
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<div>रचित जैसे ही अपने घर पहुंचा, अपने कंधे से ऑफिस का बैग लगभग पटकते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा," न

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