आपदा की बहुत सी वीडियो फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर की जा रही हैं जिनको देखकर रोंगटे खड़े हो रहे है. अधिकतर वीडियो में यह देखने को मिला है कि जहां पर भी,जो लैंडस्लाइड हुआ है या भूखंड गिरे है वहां पर अधिक जगहों पर सीमेंट से बनी हुई सरंचनाएँ ही थी ।
भू वैज्ञानिकों की चिंताओं को नजरअंदाज करके यह सारी इमारतें खड़ी की गई, यह जानकर कि हमारे पहाड़ों की सरंचना, सीमेंट, ईंट, लोहे से बने निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है फिर भी इतनी निर्माण कैसे कर दिए गए।
जगह -जगह रिसोर्ट और होटलों की अंतहीन श्रृंखलाएं पर्यटन के नाम पर बना दी गई है.
एक से एक विशेषज्ञ यहां पर होने के बावजूद उनकी सेवाएं क्यों नहीं ली जा रही है, यह अबूझ प्रश्न है?
क्यों पहाड़ों को उनके वृक्ष पेड़ पौधों से आच्छादित जंगलो से वँचित कर कंक्रीट के जंगल से पाटा जा रहा है.
समय-समय पर यह घटनाएं हमें चेताती रहती हैं लेकिन हम लोग जागने को क्यों नहीं तैयार हैं?
क्या अब हम लोगों के बीच में कोई गौरा देवी और सुंदरलाल बहुगुणा पैदा नहीं होंगे, जो पहाड़ के सरंक्षण को, अपना लक्ष्य बना सके।
क्या हमारे संबंधित विभाग इस प्रदेश के हित को अपना लक्ष्य नहीं बना सकते हैं.
आखिर कब तक उत्तराखंड राज्य राजनीतिक सैर सपाटे का केंद्र बना रहेगा?
चार धाम के नाम पर या पर्यटन के नाम पर होने वाली तबाही आखिर कब तक रुक पाएगी?
क्या इन प्रश्नों के हल कभी मिलेंगे