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उत्तराखंड की जल आपदा

21 अक्टूबर 2021

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आपदा की बहुत सी वीडियो फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर की जा रही हैं जिनको देखकर रोंगटे खड़े हो रहे है. अधिकतर वीडियो में यह देखने को मिला है कि जहां पर भी,जो लैंडस्लाइड हुआ है या भूखंड गिरे है वहां पर अधिक जगहों पर सीमेंट से बनी हुई सरंचनाएँ ही थी ।

 भू वैज्ञानिकों की चिंताओं को नजरअंदाज करके यह सारी इमारतें खड़ी की गई, यह जानकर कि हमारे पहाड़ों की सरंचना, सीमेंट, ईंट, लोहे से बने निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है फिर भी इतनी निर्माण कैसे कर दिए गए।
 
 जगह -जगह रिसोर्ट और होटलों की अंतहीन श्रृंखलाएं पर्यटन के नाम पर बना दी गई है.

 एक से एक विशेषज्ञ यहां पर होने के बावजूद उनकी सेवाएं क्यों नहीं ली जा रही है, यह अबूझ प्रश्न है?
 
 क्यों पहाड़ों को उनके वृक्ष पेड़ पौधों से आच्छादित जंगलो से वँचित कर कंक्रीट के जंगल से पाटा जा रहा है.
 
 समय-समय पर यह घटनाएं हमें चेताती रहती हैं लेकिन हम लोग जागने को क्यों नहीं तैयार हैं?
 
 क्या अब हम लोगों के बीच में कोई गौरा देवी और सुंदरलाल बहुगुणा पैदा नहीं होंगे, जो पहाड़ के सरंक्षण को, अपना लक्ष्य बना सके।
 क्या हमारे संबंधित विभाग इस प्रदेश के हित को अपना लक्ष्य नहीं बना सकते हैं.
 आखिर कब तक उत्तराखंड राज्य राजनीतिक सैर सपाटे का केंद्र बना रहेगा?
 चार धाम के नाम पर या पर्यटन के नाम पर होने वाली तबाही आखिर कब तक रुक पाएगी?

क्या इन प्रश्नों के हल कभी मिलेंगे
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मूक

9 मार्च 2017
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मुझे याद है उसके सृजन के गीत. उसकी शब्दों से दिया जलाने की काबलियत ,शब्दों से वीणा बजा दिया करता था वो , शिकारी जानवरों को नचा दिया करता था वो अक्सर. वह अब मूक है ,उसके शब्द ठिठक गये है अब ,जब से जल विप्लव के खबरे आई है, भूकंप ने छीन लिए उस

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अपेक्षाओ का बोझ ढोते बच्चे

10 मार्च 2017
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अपेक्षाओ का बोझ ढोते बच्चे किताबो के पुलंदे तले दबे बच्चे तर्क-वितर्क में उलझे बच्चे अविकसित दिमाग से जूझते बच्चे अबोधवय में अर्जित ज्ञान ! ये तो नहीं कुशाग्रता की पहचान क्या ये बन तो नहीं रोबोट ,स्वकेन्द्रित होते बच्चे. संस्कारो से इनका वियोग तो नहीं, क्या ये आध

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कविता क्या होती है

11 मार्च 2017
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------------- सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है, अक्सर भाव उठते है , जब दुनिया सोती है . पन्ने फड़फड़ाते है,कलम चलने लगती है. शब्द चमचमाने लगे है, लगता है मोती है . सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है, गरीब के आंसू ,किसी अबला की छटपटाहट. रोटी जुटाने में लगे मजदूर की

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उत्तराखंड की जल आपदा

21 अक्टूबर 2021
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कहानी -सेल्स का जॉब

17 नवम्बर 2021
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<div>रचित जैसे ही अपने घर पहुंचा, अपने कंधे से ऑफिस का बैग लगभग पटकते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा," न

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