रेल अपनी गति से आगे बढ़ रही थी ओर उसके साथ ही वह अपनी भूली-बिसरी यादों में अपना जीवन खोज रही थी वह जीवन जो कहीं खो गया था। सुचित्रा कृष्णमूर्ति न्यायाधीश जो कि कुछ समय पश्चात् सेवानिवृत होने वाली थी आज अपने पिता की अस्थियां गंगा में बहाने जा रही थी वह पिता जिन्होंने उसे जीवन दिया ओर उसे जीने का तरीका भी बताया उसके पिता न्यायालय में काम करने वाले एक साधारण कर्मचारी जो बर्खास्त किए गए वो भी एक ऐसे अपराध के लिए जो उन्होंने किया ही नहीं था किस तरह सुचित्रा को अपने विद्यालय में शर्मिन्दा होना पड़ा ,ये सब वै कैसे भूल सकती थी तभी अचानक रेलवे स्टेशन पर ट्रैन रूकती है ओर इसी के साथ उसकी यादों की यात्रा को विराम लगता है।मेडम चाय पिएंगी नहीं ट्रैन फिर अपनी गति पकड़ने लगी ओर उसी के साथ उसका दिमाग भी एक यात्रा पर निकल पड़ा किस तरह पापा के घनिष्ट मित्रों ,रिश्तेदार सबने आखें फेर ली किसी ने पापा का साथ नही दिया ,लेकिन उसे भी ये ज़िद थी की जब तक वह अपने पिता को न्याय नहीं दिलावा देगी वह उनकी अस्थियों को गंगा में नहीं बहाएगी ओर आज उसका ये संकल्प पुरा हुआ उसके पिता उस आरोप से बरी हो गए जिसमें उन्हें फंसाया गया था हालांकि इन सबने उनकी जान ले ली मेडम हरिद्वार आ गया ये वो स्थान है जहां गंगा नदी सब व्यक्तियों को उनके पापों से मुक्ति देति है लेकिन वो तो यह सोच रही थी उन लोगो का क्या बिना किसी अपराध के यहां दण्ड पाते हैं।