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न महफ़िल, न कारवाँ

21 जुलाई 2022

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हम तो अपनी हमसरी में इस तरह गाफ़िल रहे,
आज तक अपना कहीं महफिल मिला, ना कारवाँ । 

या खुदा! जब भी तुम्हारी याद दिल को छू गई,
दिल के इशारे ने चुने मोती खरे दरियाव के। 

नाखुदा है समझ बैठा दरिया उसके आसरे,
लहरें उठी, साहिल डूबा, फिर नाव के संग नाखुदा। 

यहाँ बाग-ए-बहाराँ में कहीं कोई गुल नहीं खिलता, कसम ले लो जहाँ भर की–यहाँ बस धूल मिलती है। 

जोड़ कर देख लो लाखों तगाड़े, तुल-तिकड़म के,
ये करोड़ों के फसूँ नहीं साथ जाते हैं।

चाहे जो करो यारों,जहाँ में, जीने मरने को,
मगर होते ही आँखें बंद कफ़न तक छूट जाते हैं।
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रचनाएँ
बा अदब
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'बा अदब' एक अदबी शायरी संग्रह है, जिसे ज़िन्दगी जीते हुए, ज़िन्दगी को महसूस करते हुए लिखा गया है. इसे पढ़ते वक्त आपको ऐसा लगेगा जैसे आपकी ही बात को हु -ब -हु कह दी गयी है.
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वज़ूद

5 मार्च 2022
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माना कि खूबसूरत होता है गुलाब चमन में यारों.बहार - ए - गुलशन में वही खुदा तो नहीं होता!बहुत देखा है, ज़माने के सितारों का कमाल !सुबह होते ही जिनका कोई वजूद ना रहा।

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मेरे न हुए

21 जुलाई 2022
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मैंने उनके अपनेपन का भरम पाल रखा था। मैं उनका निकला, वे मेरे न हुए।

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क्षणिकाएँ

21 जुलाई 2022
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1.मैंने उनके अपनेपन का भरम पाल रखा था।मैं उनका निकला, वे मेरे न हुए।।2.इतना अच्छा होना भी बहुत अच्छा नहीं होता......लोग हर बात में बेचारा कहा करते हैं।3.सब समंदर बने बैठे है..आओ दरिया से कुछ पानी उधार

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ज़िन्दगी हादसा है

21 जुलाई 2022
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ज़िन्दगी हादसा है, गुज़र जाता है,आदमी जीता है, मर जाता है,ज़िन्दगी में बहुत लोग मिल जाते हैं,दिल में कोई-कोई ही रह पाता है।

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आईना

21 जुलाई 2022
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तुम रोज इसमें इस तरह झाँका ना करो,ये आइना है टूट कर बिखर जाएगा।लबों पे दर्द की हिचकियाँ न लाना कभी,सुन के मंजर ये सारा दहल जाएगा।तूने उठा रखी जो नज़रों से कायनात की ज़मीर,कयामत में सरेआम मातम पसर जाएगा।

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न महफ़िल, न कारवाँ

21 जुलाई 2022
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हम तो अपनी हमसरी में इस तरह गाफ़िल रहे,आज तक अपना कहीं महफिल मिला, ना कारवाँ । या खुदा! जब भी तुम्हारी याद दिल को छू गई,दिल के इशारे ने चुने मोती खरे दरियाव के। नाखुदा है समझ बैठा दरिया उसके

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